आज चौबे जी ओमपूरी और किरण वेदी सहित अन्य लोगों के ऊपर विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव की बात सुनके बहुत गुस्से में है, कह रहे हैं कि सांच बात सहदूलवा कहे सभके चित्त से उतरल रहे । ई बताओ राम भरोसे लत्त,पित्त, बाई ई तीनों केहू के मरले पर नs जाई ? नेता हो चाहे अभिनेता, जनता हो चाहे जनसेवक सभके पास चमड़े की ही तो जुवान है । किसके नही फिसलते हैं ? ये अलग बात है कि कुछ लोग फिसलते हैं तो बस फिसलते चले जाते हैं और कुछ लोग फिसलकर भी नही फिसलते,क्योंकि फिसलने की प्रक्रिया अलग-अलग होती है जैसे नेता गुड़ में फिसलते हैं और जनता गोबर में। जनता फिसलती है तो मिलता है आश्वासन- भाषण और संडा हुआ राशन । नेता फिसलते हैं तो मिलता है स्विस बैंक का पद्मासन । अब ओमपूरी को ही ले, नs ऊ नेता है नs जनता, अभिनेता है बेचारा । इसलिए उसका फिसलना विशेष था, क्योंकि नs ऊ गोबर था नs गोबर गणेश था। चमड़े की जुबान थी ससुरी फिसल गई कहना चाह रहे थे खलनायक कह गए नालायक । कहना चाह रहे थे गद्दार,कह गए गंवार। हमरे गाँव घर में वर-वुजुर्ग सबको पढ़ने की सलाह देते हैं, सरकार भी कहती है हमरे देश का हर व्यक्ति शिक्षित हो । उसने तो नेताओं को भी पढ़ने की सलाह दी इसमें कवन गुनाह कर दिया बेचारा ? सर्व शिक्षा की बात करना कवन अपराध है भईया ?

एकदम्म सही कहत हौ महाराज हम्म आपकी बात कs समर्थन करत हईं । का गलत कह देलें ओमपूरी, इहे कहलें नs कि नेता लोगन के भी पढ़ल लिखल होए के चाहीं, नs कि लिख लोढ़ा पर पत्थर। ई देश मा लोकतंत्र कs एसे बड़ा मजाक का होई कि चपरासी तक की नौकरी खातिर योग्यता के मापदंड निर्धारित हैं आऊर नेतागिरी खातिर कवनो कायदा-क़ानून नाही ? आठ दर्जे पढ़ा-लिखा आदमी अगर दफ्तर मा चपरासीगिरी नाही कर सकत तs अंगूठा छाप देश कईसे चला सकत हएं महाराज ? राम भरोसे कहलें।

तभी अपनी लंबी दाढ़ी सहलाया और रमजानी मियाँ फरमाया "न नेत है ना धरम है फिर भी हमरे देश के नायकों को देखिये नालायक कहने पर कितनी शरम है ? अगर इन्हें सच्चे बचन नही सुहाते हैं तो ये क्यों नही चुल्लू भर पानी में डूबकर मर जाते हैं ।

इतना सुनके तिरजुगिया की माई चिल्लाई अरे सत्यानाश हो सबका, हमरे मरद को साठ साल में रिटायर कs दिए ई कहके कि अब ई उम्र मा अछैबर फाईल उठाबे के लायक नाही रहे । हमके ई बताबs गजोधर ई उम्र मा नेता काहे नाही रिटायर होत ? खुद चलने से लाचार हैं पर देश चलावत हएं । न कवनो जबाबदेही, ना कोई डिग्री की जरूरत आऊर ना रिटायर होए के झंझट ऊपर से अंधी कमाई जईसे खाला के जमाई । बस सत्ता होए के चाहीं । ओकरा के पावे के खातिर चाहे जे कुकर्म करे के पड़े । चाहे केकरो से गठजोड़ करे के पड़े, कवनो अपराधी का सहारा लेवे के पड़े । दादागिरी और बाबागिरी के फोरन से अब संसद मा नेतागिरी की तरकारी पकती है बबुआ । जे ई तरकारी कs सेवन करत हएं उनके ऊपर सरकारी डंडा नाही चलत । कानूनी हनक आऊर अंतरात्मा की खनक नाही चलत । वाह-वाह रे नेता हमारा,धारा के बिपरीत जाने पर भी नही लगती धारा ।

इतना सुन के गजोधर से नही रहा गया, अपना गुबार निकालते हुए बोला भईया हम तो यही कहेंगे कि माननीय से, कि आपने अभी छोटे-मोटे घोटाले ही कर पाए हैं जबकि औरों ने तो करोड़ों पचाए हैं। इन छोटे-मोटे पचरे में पडके वक़्त जाया मत कीजिये, आपका समय वेशकीमती है इसे गंबाने में नही कमाने में लगाईए । कबतक छुटभैये बने रहेंगे, अब तो बड़े बन जाईये । जनता छाप पौलिस घिस-घिस कर लगाईए और सुनहरे भविष्य की ओर बढ़ाते जाईए । अग्निवेश जैसों को पटाये रखिये फिर अन्ना क्या अन्ना के गुरुमहाराज भी आपका कुछ नही बिगाड़ पायेंगे । फिर भी आपको लगे कि आप उनके चक्रव्यूह में फंसते जा रहे हैं तो मनीष तिवारियों का इस्तेमाल कीजिये और खूब मजे कीजिये ।

कुल मिलाके जे निचोड़ हs ऊ ई हs गजोधर कि नेता सोचत कुछ और हैं बोलत कुछ और । कहत कुछ और हैं करत कुछ और । जे नेता पावरफूल होत हैं अभिनेता उनके आगे पानी भरत हैं । अभिनेता झूठी कहानियों पर सच्चा अभिनय करत हैं और नेता सच्ची कहानियों पर झूठा नाटक करते हैं । यानी कि नेता अभिनेता के ई लड़ाई अहं की लड़ाई है बबुआ । यानी कि इधर झगड़े रसूख के उधर झगड़े मूंछ के, बीच में जनता हलाल होई गए अरे ई तो कमाल होई गए । इतना कहके चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया !

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