चौबे जी की चौपाल
चौपाल चटकी हुई है । चुहुल भी खुबै है । उत्तरप्रदेश में हर दिन हो रहे नए-नए घोटाले के उजागर पर चुटकी लेते हुए चौबे जी ने चौपाल में कहा कि "चंद्रशेखर मिसिर क़हत रहें, कि प्रीत में ना धोखाधड़ी,प्रीत में न झांसा,प्रीत करीं अइसन,जइसन कटहल के लासा । अब प्रीत चाहे अदमी से हो चाहे सरकारी योजनाओं से कटहल के लासा जइसन होए के चाही, ई बात बहिनी अच्छी तरह से जानत रही । वैसे भी योजनायें होत हैं खाये खातिर ही। यही कारण रहा कि बहिनी ने चतुरी,फतुरी, पोंगा पंडित से लेके मुन्ना फकीर तक सबको सोशल इंजीनियरिंग का वास्ता देके गावे खातिर उकसा दिहली- चल-चल मेरे हाथी, कि ओ मेरे साथी.......चल-चल खजाना खींच के.....!"
"एकदम्म सही कहत हौ चौबे जी। हमरे समझ से जिबट वाले लोग की कमी नाही थी पूर्ववर्ती सरकार मा । तभी तो एन॰ आर॰ एच॰ एम॰ से लेके मनरेगा तक पूर्ववर्ती सरकार के कारिंदे खुबै हचक के खाये, अभाव मा केंद्र से भी मंगाए,हमनी के रोटी की जगह मंहगाई की सुंघनी भी सुंघाए और हम्म चूँ-चाँ भी नाही कर पाये । वैसे भी हम्म भौंक के का करते चौबे जी,हमरे भौंके से ससुरा हाथी अपनी चाल बदल लेता का ?"
इतना सुनके रमजानी मियाँ ने अपनी लंबी दाढ़ी सहलाई और पान की गुलगुली दबाये कत्थई दांतों पर चुना मारते हुए कहा कि "बरखुरदार, पईसा खुदा नही है मगर खुदा से कम नही है। हम्म तो बस इतना जानते हैं कि सच्चा नेता वही होता है जो नोट से कुल्ला करता है । नोट की गिल्लौरी बनाके पान के बदले मुंह मा दबा लेता हैं। भैंस की तरह पांच साल तक पगुराता-पगुराता कुछ थूक गटक लेता हैं और कुछ श्रद्धालू जनता-जनार्दन पर चुनाव के बखत थूक देता हैं, उनकी सहृदय संवेदनशीलता और ग्रहणशीलता को अपना निजी पीकदान समझ के। हमरे इन महान और जनप्रिय नेता लोगन खातिर सत्ताकी सवारी का मतलब है नोट फॉर वोट, ताकि पहनने का मौक़ा मिलता रहे बार-बार लोकतंत्र में विश्वास रुपी कोट। यानि खाया-पीया-पचाया,
सब माया । किसी शायर ने कहा है कि खुदा नही,न सही,आदमी का ख़्वाब सही,कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिए ।"
वाह-वाह रमजानी मियाँ वाह, का बतकही किए हो मियाँ ! एकदम्म सोलह आने सच बातें कही है तुमने। काहे कि जनता बना है 'व्यक्ति' से आऊर नेता 'समाज' से। जनता के पास पईसा होए के मतलब देश मा 'व्यक्तिवाद' आऊर नेता के पास पईसा का मतलब होत है देश मा 'समाजवाद'। 'व्यक्तिवाद' गोबर है, 'समाजवाद' गुड़। अगर हमरे नेता 'व्यक्तिवाद' का गोबर त्याग के 'समाजवाद' के गुड़ ना खईहें तs देश के गुड़-गोबर होए से कईसे बचईहें ?" कहलें गजोधर ।
इतना सुन के तिरजुगिया की माई विल्कुल नेतवन के अंदाज़ में मुस्कुराती हुई चिल्लाई " ई हुई ना लाख टके की बातगाजोधर भईया, मगर ज़माना के साथ साथ बदल गई है ससुरी परिभाषा राजनीति की । कमबखत नेता लोग अब अपने गिरेबान में नही झांकते, दनादन शब्दों के तीर चलाते हैं एक-दुसरे के ऊपर । अपने किला को मजबूत नही करते,दूसरों के किला गिराने की साजिश रचते हैं । आपन चश्मा ठीक नाही करवाते, दूसरे के नंबर पर शक करते हैं । जो उनके साथ रहता है उनको दुनिया का सबसे शरीफ नज़र आता है,भले ही ऊ लाईसेंसी गुंडा काहे न हो ? जो दूसरों के साथ रहता है उनको सबसे बड़ा चोर नज़र आता है,भले हीं शरीफ क्यों न हो ? इतना ही नहीं अरसे तक साथ रहने वाला ईमानदार साथी पाला बदलते ही चोर हो जाता है । रही-सही कसर अफसरशाही पूरी कर रही है । ऊ चाहे पुलिस महकमा हो या प्रशासनिक । पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर कवन लेना चाहेगा ? हुक्म सही हो तो भले ही देर लगाएं मगर गलत को मिनटों में बजायेंगे । रही घोटाले की बात तो काबों रुका है जो अब रुकेगा ?"
"तोहरी बात मा दम्म है चाची । भ्रष्टाचार जहां पटवारी से लेकर प्रधान मंत्री के रगों में दौर लगा चुका है,अलग-अलग किस्मों-रंगों में भ्रष्टाचार ऐसे घुसा बैठा है कि सरकार के साथ-साथ हमको भी डर लगता है कि बिना भ्रष्टाचार के हम रह पाएंगे भी या नहीं ?" बोला गुलटेनवा।
गुलटेनवा की बतकही सुनके चौबे जी गंभीर हो गए और इतना कहके चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया कि "जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा ।"
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