आज चौबे जी की चौपाल लगी है बरहम बाबा के चबूतरा पर । चुनावी हलचलों से भरा-पूरा है चौपाल । खुसुर-फुसुर के बीच चौबे जी ने कहा कि "जब से बजा है चुनावी बाजा,हर केहू इहे गावत हैं- वोटर राजा....आजा मेरी गाडी में आजा। होई गए ससुरी झूठ मा सच की मायावी मिलावट, न सुस्ती न थकावट। अजब-गज़ब प्रत्याशियों की भरमार,कहीं बाघ की खाल में रंगे सियार तो कहीं चतुर नार बड़ी होशियार। जनता हटत जात,ससुरी सटत जात। उधर वालीवुड की हुस्नपरी अमरप्रेम में पगलायके अज़मवा के खुबई कोस रही है, इधर यू.पी.वाला ठुमका लगाएँ, कईसे नाच के दिखाएँ, एम.पी. वाली उमा सोच रही है। हाथी पर पर्दा परि गए, युवराज फुलि के कुप्पा होई गए । छोटे मियाँ की दूकान क्या चटकी,साईकिल की रफ़्तार बढाए दिए हैं और बड़े मियाँ के आराम खातिर झाड पर चढ़ाए दिए हैं ।बडबोले दिग्गी का मन आजकल रीता-रीता है और विधायक जी के पास एक से एक परिणीता है। केहू आपन चिर परिचित चाल मा मस्त है तs केहू वोटरन के रिझावे खातिर अद्धा-पौआ पियावे में व्यस्त है । पहिले मजदूर-किसान चिल्लात रहें हसिया और बाली,अब चिल्लात हैं घरवाली-बाहरवाली। प्रदेश मा सब कुछ होई गए उल्टा-पुल्टा,क्या शरीफ-क्या कुल्टा ? दुश्मन के चूमे,दोस्तन के कोसे....ई चुनावी माया महाठगनी है राम भरोसे।"
"सही कहत हौ चौबे जी। चुनाव का मौसम का आये गए हंस की चाल मा कौआ चलने लगा,उल्लू अंग्रेजी बोलने लगा,कगवा पुराण बांचने लगा। और तो और भावी विधायक सटहे-सटहे परधानन के द्वार पूजा करने लगे। खुसुर-फुसुर बढ़ी गए हैं महाराज, सब केहू इहे पूछत हैं कि इस बार कवन करवट बैठेगा मुसलमान? रघुपति राघव राजा राम वाला धुन बाजी कि ना ? सवर्ण अईहें कि ना पहाड़ के नीचे ? बैकवार्ड साईलेंट मोड मा रहिहें कि कुछ बोलिहें भी ? नौ मन तेल ना होई तs का हथनी ना नाची? अंतत: नेतवन के ई भी गुमान है चौबे बाबा कि समीकरण जैसे बदलिहें जनता पर सम्मोहनी डालिके लूट लेंगे वोट,आखिर हमरे रहमोकरम पर पले पोसाए वाले वाहुवाली कवन दिन काम अयिहें ? छुरी तरबूज पर गिरे चाहे तरबूज छुरी पे आखिर हलाल तs तरबूजे होई नs?" बोला राम भरोसे ।
"एकदम्म सही, विल्कुल सोलह आने सच।छंटे हुए प्रत्याशियों की छंटी हुई वयानवाजी सुन-सुनके अब उबकाई आबत है हमके। दिन-रात अपराध,भ्रष्टाचार,घोटाला मा लिप्त रहे वाला के मन में कईसे जनता खातिर इतना प्यार उमड़ी जात हैं अचानक, हमके समझ मा नाही आवत। ई ससुरी राजनीति अब राजनीति नाही रही तबायफ का गज़रा होई गयी है, नेता लोग रात मा पहनत हैं सुबह मा उतारि देत हैं।" बोला गजोधर।
यह सब सुनकर रमजानी मियाँ की दाढ़ी में खुजली होने लगी।पान की पिक पिच्च से फेंककर अपनी लंबी दाढ़ी सहलाते हुए फरमाया कि "बरखुरदार, इस भीड़तंत्र में सब हैं बाबन गज के, केहू इक्यावन गज के नाही है। ऊ गंदा बोलत हैं। गंदा करत हैं। जेकरा जब,जहां,जैसे,जे मर्जी आवत है ऊ गन्दगी पर गन्दगी उड़ेलत जात है। आये दिन बेहिसाब फेंकी जा रही इस गन्दगी से उजली कमीजों की तादाद लगातार कम होई गए। जे गंदा रहलें ऊ और गंदा होई गए । नैतिकता दम तोड़ गयी। मर्यादा सीमा लांघ गयी । माहौल में जहर घुली गए। नेता लोग अब चुनाव नाही लड़त जश्न मनावत हैं। न कोई उनके टोके वाला न कोई रोके वाला। खैर छोडो मियाँ एक शेर सुन लेयो इसी मौजू पर दुष्यंत साहब का, अर्ज़ किया है - तुम्हारे शहर में ये शोर सुन-सुनकर तो लगता है, कि इंसानों के जंगल में कोई हांका हुआ होगा।"
"बाह-बाह क्या शेर पटका है रामाजानी भईया। इसी मौजू पर एक रुबाई हमरी भी सुन लेयो- कुछ टैक्स हमसे ले लो शिक्षा के नाम पर, कुछ रक्त हमसे ले लो रक्षा के नाम पर,पहले तो बहुत ले चुके घोटाले की आड़ में, बाकी जो बचा ले लो चुनावी भिक्षा के नाम पर।" गुलटेनवा बोला।
इतना सुनकर तिरजुगिया की माई चिल्लाई "अब ऊ ज़माना गए गुलटेनवा, यू. पी. की जनता मूरख नाही है। जईसे -जईसे चुनावी पारा चढीहें, विरोध के स्वर तेज होई जाई। छोटी सी चीज से बड़े-बड़े किस्से हवाओं में तैरे लगिहें। पता नाही केतना लोगन की इज्जत नीलाम होई जाई। कहाँ-कहाँ कईसन-कईसन लोग चटकारे ले-लेके सुनईहें और सुनिहें। देख बबुआ आगे-आगे होत है का ? ईमानदारन के मिली जीत की ख़ुशी और बईमानन के ऊपर बरसिहें हार का सोंटा....तैयार रहs लोगन।"
"खिसियाके खंबा नोचले से काम ना चली चाची, हमन के मिलके कुछ करै के पडी।" पान की गुलगुली दबाये रमजानी मियाँ ने चुटकी लेते हुए कहा।
इतना सुनके चौबे जी सीरियस हो गए और कहा क़ि "ई पब्लिक है सब जानत हैं,अगर ई सच है तो फिर नकारा,भ्रष्ट और अपराधी नेतवन के बाहर का रास्ता काहे नाही दिखा देत हैं हमरे प्रदेश की जनता? राजनीति से अपराधीकरण काहे नाही मिटाए देत हैं? वास्तव में जनसेवक बने लायक लोगन के हम आपन रहनुमा काहे नाही बनावत हईं ? अईसन नेता हार जयिहें तs का बिगारिहें हमार ? गरियायवे ना करिहें और का करिहें ? तs चलs हमनी के मिलके आज ई संकल्प लेत हईं कि ईमानदारों को जिताएंगे,बईमानों को बाहर का रास्ता दिखाएँगे।" सबकी सहमति के बाद चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया।