आज चौबे जी कुछ दिलफेंक मूड में हैं। चुनावी घटनाक्रम पर अपनी बतकही से गुदगुदाते हुए उन्होंने कहा कि ” अपने खुरपेंचिया जी भी भगोड़ा पार्टी से चुनाव लडे खातिर लंगोट कस लिए हैं राम भरोसे। अब पेट में आंत नाही है,मुंह मा दाँत नाही है तs ये मा खुरपेंचिया जी के का दोष,जिगडा तो है नs ? कम से कम अपने खुरपेंचिया जी झूठ से वास्ता तो नाही रखत और नेतवन की तरह। खुरपेंचिया कहत हैं कि हमार वादा है चौबे जी जवन दिन हम्म मिस्टर बन गए, कुत्ता और कलक्टर में अंतर नाही रखेंगे। इंग्लिश की टाँगे तोड़ाई करै वालन के हम्म पुरस्कृत करेंगे और मैट्रिक फेल करे वालन के वैरिस्टर बनायेंगे ताकि देश से ससुरी वेरोजगारी मिट सकै। अस्पताल मा झोला छाप डॉक्टरन वहाल होईहें, घूस लेवे वाला अफसर निहाल होईहें । विभाग हेड वार्ड व्याय या कम्पाउंडर के बना दिहल जाई,ताकि डॉक्टरन के ससुरी मनमानी अपने आप बंद होई जाई। केकरो गाडी के टायर कबो ना होई पंचर, राशन भले ही होई जाई मंहगा मगर कबो मंहगा ना होई खंजर। छात्र खातिर रियायत मूल्य पर तमंचा चौबीसों घंटा उपलब्ध रही और माफिया भईया खातिर एक खरीदला पर एक फ्री में मिली ई हमार वादा है। घूस और भ्रष्टाचार के राष्ट्रीय आवश्यकता घोषित कर दिहल जाई, ताकि अफसर और नेता खुलके दलाली कर सकें । ज़रा सोचो कितना उच्च विचार है अपने खुरपेंचिया जी के राम भरोसे ।”

“बाह-बाह चौबे जी महाराज वाह,एकदम्म सटीक है ई चुनावी घोषणा पत्र। स्वाभिमान शब्द सुने में अच्छा लागत हैं,अपने ऊपर लागू करै मा नाही। धनिया में घोड़े की लीद मिलावे वाला और घी मा चर्वी मिलावे वाला व्यापारी प्रदेश के खाद्य मंत्री होई सकत हैं, त रियायती मूल्य पर तमंचा उपलब्ध करावे वाला खुरपेंचिया जी मुख्य मंत्री काहे नाही बन सकत ?” बोला राम भरोसे।

“का बताएं भईया, अपने प्रदेश मा चुनावी मौसम का आया, फागुन के संग पतझड़ आ गया है..दोउ कर जोड़े खीस निपोरे एक से एक मुकद्दर का सिकंदर आ गया है । वैसे हमरे प्रदेश का इतिहास रहा है भाई जी कि, जब भी वोट देके जेकरा के प्रतिनिधि के रूप में हम्म सब चुने हैं, ओकरे खातिर बार-बार आपन सिर धुनें हैं । बरमुडा त्रिकोण के रहस्य जईसन पता नाही जीतला के बाद सबके सब लखनऊ के भूलभुलईया में जाके काहे छिप जात हैं ?” कहलें गजोधर ।

चुनाव कs बात सुनि के उबियाइल गुलटेनवा के चुप ना रहल गईल, कहलें कि “ये बाबा ! अबकी सोचि-समझ के अस बनाबह सरकार,डूबन चाहत हिंद को जो भी लेय उबार।जो भी लेय उबार,वही सरकार बनाओ…..उनके पगलाए दो,खुद मत पगलाओ ।”

इतना सुन के रमजानी मियाँ से नहीं रहा गया । अपनी लंबी दाढ़ी सहलाते हुए कहा कि “अमा यार, काहे सीरियस होई जात हैं आप लोग चुनाव घोषणा पत्र पढके ? चुनाव घोषणा पत्र का मतलब होत है मियाँ चुनाव जोर गरम,जेकराके हर बेचे वाला मजेदार कहत है और खाए वाला कन्फ्यूजन में रहत है कि मजेदार कहें या बदबूदार ? केहू समाजवादी चटनी मिलायके चुनाव जोर गरम के खुबई चटपटा बनाए देत हैं तो केहू धर्म निरपेक्षता की छौंक मारके। केहू चुनाव जोर गरम मा राम के चरणामृत मिलाय देत हैं त केहू हाथी की लीद। सबके आपन अलग स्वाद होत हैं जेकराके जे भावे।”

इतना कहके रमजानी मियाँ कुछ ज्यादा सीरियस हो गया और एक शॉर्ट ब्रेक के बाद बोला कि “बईमानी और भ्रष्टाचार हमरे देश की आधुनिक सभ्यता बन गयी है। संस्कृति बीमार होके राग दरवारियों की खटिया पर पडी कराह रही है। नेता लोग पतियों की तरह रोज बदल रहे हैं पार्टी और राजनीति की मत पूछौ ससुरी ऐसी छिनाल हो गयी है, कि कलमुंही ओकरे साथ साथ सोवत है जेकरे पास कंचन कवच होत हैं। अईसे में का पंजा,का फूल,का साईकल, का हाथी ? इसी मौजू पर दुष्यंत साहब का एक शेर सुन लेयो अर्ज़ किया है बरसात आ गयी तो दरकने लगी जमीन,सुखा मचा रही ये वारिश तो देखिये। …… क्या ख्याल है राम अंजोर ?”

“नाही रमजानी भईया तू कबो गलत ना कह सकत हौ । हमरे समझ से चुनाव के दौरान जे घोषणा होत हैं ऊ केवल आम लोगन के छले खातिर होत हैं रमजानी भईया । ससुरी सारी की सारी पार्टी सत्ता में आवे के बाद भावी तस्वीर के देखाके ई जतावे के प्रयास करावत है कि हमार पहिला लक्ष्य आतंकवाद को समाप्त करना है । देश के नौजवानों की बेरोजगारी समाप्त करनी है । देश में औद्योगिक नगरों की स्थापना तथा प्रत्येक गांव में बिजली, पानी और सड़क मुहैय्या कराना है । किसानों को खुशहाल रखना है । आजतक केहू आपन वादा निभयलें जे निभायिहें । बेरोजगारी के ग्राफ बढ़ा दिहल गईल और नई नौकरियों की संख्या काफी कम कर दिहल गईल । आम लोगन के पईसा सदियों से मंहगाई डायन खाए जात है, न कबो ई डायन में मारे के कोशिश कएल गईल ना कबो भविष्य मा कएल जाई । काहे कि थूकम-पैजार के वाबजूद हर बार चुनाव मा ईहे नारा गूंजत है कि हम हर हाथ को काम देंगे हर सर को छत। अपने खुरपेंचिया जी भले मानुष हैं कि सबको रोटी सबको कपड़ा सबको मकान की बात सुनके उनके चक्कर आई जात है।” …..कहलें राम अंजोर ।

इतना सुनि के तिरजुगिया की माई से ना रहल गईल,कहली कि “झूठ बोलने वालों को खुबई जिताए हम लोग इसबार सांच बोलने वालों को जिताया जाए । का गलत कहत हईं चौबे जी ?”

इतना सुनके चौबे जी रोमांचित हो उठे और कहे कि चलो मिलकर गाते हैं ….
“शीशे के घर पत्थर आया बहुत दिनों के बाद,
अरे चुनावी मंज़र आया बहुत दिनों के बाद।
दोउ कर जोड़े खीस निपोरे बात करे बड़बोले,
लखनऊ से जो चलकर आया बहुत दिनों के बाद।
राग-भैरवी छेड़ रहे पर फटी हुई आवाज़,
फागुन के संग पतझड़ आया बहुत दिनों के बाद।
चिकनी सूरत वाला सेठ भिखारी के घर जैसे,
चावल में फ़िर कंकड़ आया बहुत दिनों के बाद।
सबको रोटी सबको कपडा सबको मिले मकान,
सुनकर मुझको चक्कर आया बहुत दिनों के बाद।”

इतना कहकर चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया।

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