आज चौबे जी की चौपाल लगी है राम भरोसे की मडई में । चटकी हुई है चौपाल । चुहुल भी खुबई है । खुले बरामदे में पालथी मार के बैठे हैं चौबे जी महाराज और अन्ना बनाम लेफ्ट-राईट जंतर-मंतर जादू-टोना पर खुलकर कह रहे हैं कि “ई कलमुंही सत्ता बड़ी पावरफूल चीज होत हैं राम भरोसे । लेफ्ट और राईट मिलाके जंतर-मंतर,जादू-टोना कएला से अन्ना बुढऊ के कुछो ना हासिल होई । केकरा-केकरा के सुधारिहें ? श्रीमान चोरजी के,जे विधायक और सांसद कोटे में हेराफेरी से आपन काम चला लेत हैं या फिर श्रीमान डाकूजी के, जे ए जी,ओ जी,टू जी, थ्री जी या फिर सी डब्लू जी से जबरन वसूली कर लेत हैं। हमरे गाँव मा ई कहाबत बहुत मशहूर है कि धिया लबरी होईह तs होईह मगर गलरी जरूर होईह। ताकि मुसीबत मा गाल बजाके निकल जईह । आजकल ईहे काम केंद्र सरकार के कुछ नेता कर रहे हैं अन्ना के साथ । अन्ना को समझना चाहिए कि गाल बजाने वाले नेताओं में तीन गुण होत है । यानी पहिला गुण आंखि बचाके चोरी करने का, मौक़ा मिल जाए तो हवाला-घोटाला-फिरौती और डकैती करने का और तीसरा गुण होत है आलाकमान के खासमखास बने रहने का। हमरे समझ से अन्ना को देर-सवेर गांधी जी की उस युक्ति को मान ही लेना चाहिए कि अपराध से घृणा करो अपराधी से नही।”

आपकी बात सोलह आने सही है चौबे जी,मगर हमरे समझ से अपराधी नेता नाही होत,नेता की जात होत है। सत्ता में चाहे कोई आये लूट-खसूट का ई सिलसिला बंद नाही होने वाला……. अन्ना जी के अनशन करत-करत जिनिगिया बीत जाई आउर जबतक लोकपाल बिल पारित हो के आई न s तबतक खाली हो जाई ससुरी स्विस बैंक के खातन से हमरे देश क पईसा । फिर कईसे होई लोकपाल बिल से क़माल,जब होई जाई मामला ठनठन गोपाल ? बोला राम भरोसे।

इतना सुनके रमजानी मियाँ ने अपनी लंबी दाढ़ी सहलाई और पान की गुलगुली दबाये कत्थई दांतों पर चुना मारते हुए कहा कि “लाहौल विला कूबत, पत्तों से चाहते हो बजे साज की तरह। कल सत्ता पक्ष का एक नेता आया हमरे घर और कहने लगा कि मियाँ रमजानी, का बताएं अन्ना को रह-रह के दौरा उठता है अनशन करने का। अभी कितना दिन हुआ ही है सत्ता में आये इसलिए हमने छोटे-मोटे घोटाले ही कर पाए। हमरे पेट पर लात मारने का उनको क्या हक़ है मियाँ ? अगर ये घोटाला बंद हो जाएगा तो क्या नुक्सान सिर्फ मेरा ही होगा आम जनता का नही होगा ? आप कल्पना कर सकते हैं कि हम आप जैसे आम-आदमी को लोकपाल से कितनी समस्या होगी. कितनी नई समस्याओं से जूझना होगा. जीवन मुहाल हो जाएगा. आप जल्दबाजी में रेडलाइट जम्प मारेंगे तो ट्रैफ़िक इंस्पेक्टर 100 रुपल्ली लेकर आपको नहीं छोड़ेगा. ट्रेन का टिकट बाबू लोकपाल का भय दिखाकर हाथ खड़े कर देगा. ट्रेवल एजेंट लोकपाल के भय के कारण अपना धंधा बदल चुका होगा आदि-अदि । मैंने कहा अमा यार हमारा तो जो होगा वो होगा मगर आप कबतक छुटभईये बने रहोगे,अब तो बड़े बन जाओ क्योंकि जबतक समुन्दर की तह में नही जाओगे मोती नही मिलेगा नेता जी। अगर सफल नेता का सर्टिफिकेट चाहिए तो शरीफों से रिश्ता बनाओ और कमीनों से दोस्ती करो । काम कोई भी बुरा नही होता इसलिए करने से पहले भी मत डरिये और बाद में भी नही । देश स्वतंत्र है जमानत मिल जायेगी ससुरी ताली बजाके । पैसे नही रहेंगे तो पहचान का संकट बना रहेगा और पैसे रहेंगे तो तिहाड़ भी तीर्थस्थल की तरह महसूस करोगे । अन्ना,मन्ना, गन्ना के झटके तो आते रहेंगे आप विकास कीजिये ताकि बायपास से देश का भी विकास हो । बरखुरदार किसी ने ठीक ही कहा है हमरे देश की राजनीति भूकंप से बड़ी है,आज़ादी के बाद से झटकों पर खड़ी है । एक शॉर्ट ब्रेक के बाद फिर मैंने समझाया कि तुम विकास नही करोगे तो देश का विकास भी नही होने वाला है बरखुरदार,तब उसे समझ में आया ।खैर छोडो लो मियाँ इसी मौजू पर दुष्यंत साहब का एक शेर फेंक रहा हूँ , कैच कर सकते हो तो कर लेयो । अजी फरमाया है कि ”तुम्हारे पावों के नीचे कोई जमीन नही है,कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं है ।”

रमजानी मियां का शेर सुनकर उछल पडा गुलटेनवा। करतल ध्वनि करते हुए बोला “वाह-वाह रमजानी मियाँ वाह, क्या मस्त शेर सुनाये हो मियाँ ! एकदम्म झक्कास बातें कही है तुमने। ई विषय पर अपने खुरपेंचिया जी भी कहते हैं कि राजनीति मा बुरापन कवनो मायने नाही रखत। काहे कि कौम कंगाल होईहें तब न राजनेता मालामाल होईहें ? सही राजनेता की यिहई पहचान है कि ऊ जब चाहे -जहां चाहे-जिसे चाहे लूट लेय । जे के चाहें क़त्ल कर देय । जहां चाहें कब्जा कर लेय । जहां चाहें रंगदारी मांग लेय । नेता उहे जे जहां चाहें मार-काट कर सकै । पुलिस उनके सामने बेजार होई जात हैं, जनता लाचार होई जात हैं । अगर ससुरे पावर नाही तो नेतागिरी कैसी भईया ? “

देखो महाराज, कान पाक गए हमार सुनते-सुनते कि हमरे देश क नेता ई है,नेता ऊ है …ई बताओ कि भ्रष्टाचार के लिए खाली नेता लोग दोषी हैं का ? हम्म भी उतना ही दोषी हैं चौबे जी । यह अलग बात है कि वे सोचते कुछ और हैं बोलते कुछ और हैं यह तो उनकी फितरत है ….उनके सोचने,उनके बोलने ,उनके करने में उतना ही अंतर है जितना धरती और आसमान ….ये मा कवन नया है महाराज, ई तो परंपरा में है हमरे देश की …. अगर नेताओं से हम सबको इतनी ही घृणा है तो चुनाव के बखत जब ऊ नारा लगाते हैं कि- तुम बनाबाओ हमारी सरकार, हम दिलाएंगे तुम्हारे अधिकार । तब उनको जबाब क्यों नही देते ? बताईये चौबे जी महाराज ,है कोई जबाब आपके पास ? तमतमाते हुए पूछा अछैबर ।

इसका मतलब ई हुआ अछैबर कि पैसा कमाना कवनो गुनाह नाही है ….पैसा है तो पावर है, इज्जत है, पैसा है तो प्रशंसा है, प्रसिद्धि है। पैसा है तो ससुरा जेल भी फाईव स्टार होटल से कम नाही । पैसा नाही है तो अच्छे-अच्छों के गाल पिचक जात हैं,चौक-चौराहा पर ऊ तमाशा बन जात हैं। ज़रा सोचो दाल में काला होना गुनाह के संकेत मानल जात हैं, दाल पिली हो या काली दाल तो दाल हीं है न,जब कलमुंही पूरी की पूरी दाल हीं काली है तो गुनाह कैसा ? और जब गुनाह, गुनाह हीं नही है तो डर काहे का ? बोला गजोधर ।

इतना सुनके तिरजुगिया की माई से ना रहल गईल, कहली कि -”वुद्धिभ्रष्ट हो गई है तुम सब की। ई समय चहूँ ओर भ्रष्टाचारियों की जयजयकार है । बढ़ते अपराध से जनता बेजार है । सत्ता कहती है-अन्ना की सोच बीमार है । पलट के अन्ना कहते हैं कि सत्तारूढ़ दल बेकार है । सत्ता बचावे और पावे खातिर जैसे दूनू आपस में लड़त हैं । एक-दूसरा के नंगा करत हैं, ऊ बहुत अफसोसजनक है गजोधर ।”

“तिरजुगिया की माई की बतकही सुनके चौबे जी गंभीर हो गए और कहा कि “तोहरी बात मा दम है तिरजुगिया की माई, शायद राजनैतिक पतन के कारण ही समाज से रोजी-रोटी और विकास के मुद्दे गौण हो गए हैं और नेताओं के जहर बुझे वाण इस पावन धरती को और घायल कर रहे है ।” इतना कहके चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया ।

रवीन्द्र प्रभात

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