आज चौबे जी बहुत खुश हैं, कह रहे हैं कि "राम भरोसे देखा ....अन्ना ने चूसा दिया नs गन्ना भ्रष्टाचारियों को .... बड़ा हेकड़ी बग्घार रहे थे पहिला दिन, कि अनशन के लिए पुलिस के पास जाईये, बाद में खुदै करने लगे खातिरदारी । अब हमरे अन्ना से कोई टेढ़िया के अऊर रेरियाके बतियायेगा तो यही हस्र होगा नs s s ....। डरता ऊ है जिसको कुछ खोने का डर होता है, अब अन्ना के पास का है जो ऊ खो देगा ? स्टार टी.वी. वाला चौरसिया कह रहा था कि रालेगण सिद्धि में बेचारा मंदिर की एगो कोठारिया में पडा रहता है दिन भर , एक ठे बक्सा है , जिसमें कपड़ा-लात्ता अऊर पीढिया बगैरह मडई के किनारे पडा रहता है, कमरा में एक ठे झिलंगा खटिया है और कुछ कसकूट के थरिया .... रतिया को सोने के समय सब खटिया के नीचे अंडसा दिया जाता है ....इसको कहते हैं असली संत, का समझे ?"
मगर महाराज अन्ना जी के अनशन करत-करत जिनिगिया बीत जाई आउर जबतक जन लोकपाल बिल पारित हो के आई नs तबतक खाली हो जाई ससुरी स्विस बैंक के खातन से हमरे देश कs पईसा । फिर कईसे होई जन लोकपाल बिल से क़माल,जब होई जाई मामला ठनठन गोपाल ? बोला राम भरोसे ।
अब इस बात पर हम बिना कवनो लाग लपेट के बोलेंगे तो बोलोगे कि बोलता है । मगर का करें हम जनता हैं आऊर ऊ जनार्दन, जब दिल कुहुकेगा तो बोलेंगे ही ...न चाहते हुए भी अपना मुंह खोलेंगे ही ...ज़रा सोचो राम भरोसे भाई, जब जनता के हित की बात आती है, तब सदन में इनके अहं टकरा जाते हैं ,हफ़्तों सदन नही चलते, पर जब खुद जनसेवकों की सुविधाएं बढाने की कोई बारी आती है तो एक मिनट मा प्रस्ताव कईसे पास हो जाता है ? कईसे सब चोर-चोर मौसेरे भाई एक हो जाते हैं ? यह काम इन सबके लिए बड़े नेक हो जाते हैं ? है कोई उत्तर इनके पास ? अपनी लंबी दाढ़ी सहलाते हुए पूछा रमजानी ।
एकदम्म सही कहत हौ रमजानी। सरकार सोचत रही कि रामलीला मैदान मा जैसे बाबा बम के डिफ्यूज कर दिहल गईल रहे, वैसे ही अन्ना टीम के रथ के पहिया पंचर कर दिहल जाई । जैसे ही हवा फुस्स से निकली अन्ना बेदम हो जयिहें फिर अन्ना के मुंह में पाँव रोटी ठूंस दिहल जाई, न रही अनशन रूपी बांस न बाजी सत्याग्रह रूपी बांसुरी ।मगर सब उल्टा-पु ल्टा हो गईल,कहले हs अन्ना कि,जान दे देब बाकिर ग्लूकोज ना चढ़वाएब....बोला राम भरोसे।
बहुत देर से चुप गुलटेनवा से रहा नहीं गया, बोला "ये कोई बात हुई कि लरिका-फरिका जईसन जिद पकड़ लिए तो मानेंगे नहीं और मानेंगे भी तो चांद खिलौना लेकर ही मानेंगे, नहीं तो भूखे ही मर जाएंगे। अन्ना के ई तरिका ठीक ना हs । अन्ना समझने का नाम नहीं ले रहे…बताओ गजोधर भईया अलग-अलग किस्मों-रंगों में भ्रष्टाचार ऐसे घुसा बैठा है कि सरकार के साथ-साथ हमको भी डर लगता है कि बिना भ्रष्टाचार के हम रह पाएंगे भी या नहीं।"
इतना सुनते ही तिरजुगिया की माई चिल्लाई......"गजोधर का कहिहें पहिले हमार बात सुनs लोगन कि अन्ना के लोकपाल बिल पर आशंका जतावे वाला हर आदमी के सरकार के पिट्ठू अउर देशद्रोही बता के का ऊ असहिष्णु अउर असंवेदनशील नइखन बनत ? अन्ना अउर उनकर टीम पूरा विश्वास के साथे कइसे ई दावा कर सकत हैं कि ऊ जवन जन लोकपाल बिल देत बाडऩ उहे सही बा अउर केहू एकर आलोचना नइखे कर सकत? "
चाची की बात मा दम्म हs रमजानी भाई, अगर सरकार जनादेश अउर संसद के सर्वोच्चता के आड़ में लुकात बिया तs का अन्ना के टीम देखावटी नैतिकता के आड़ में लुकाए के कोशिश के दोषी नइखे ? पूछा गजोधर !
इतना सुन के चौबे जी का चेहरा छूछमाछर हो गया, लगे घिघियाने और गजोधर की हाँ में हाँ मिलाते हुए बोले "ई सच है बबुआ कि जवन देश ने नाकामी के अनगिनत किस्से रचे,अपराध के सारे रिकॉर्ड तोड़े,भ्रष्टाचार जहां पटवारी से लेकर प्रधान मंत्री के रगों में दौर लगा चुका हो, वहां अन्ना के जन लोकपाल क़ानून से एकबारगी बंद थोड़े नs हो जाएगा। पहिले तs जो हुआ वो भी ठीक,जो हो रहा है वो भी ठीक। जो होगा वो भी ठीक होगा। सब ऊपर वाले की माया है। वो जो करेगा अच्छा ही करेगा,ज्यादातर हमारा देश इसी थेयोरी पर चलता है। खासकर बेकाबू हालात में बेबस इंसानों को यह थेयोरी कुछ ज्यादा ही याद आती है ।कर्म के बजाये छोटे-छोटे खानों में बंटना । भाग्य के सहारे जीना । खुद कुछ ना करना । जो करो तो उल्टा-पुल्टा । फिर सबकुछ ऊपर वाले के भरोसे छोड़ देना। चादर लंबी तानकर सो जाना। जो होगा देखा जाएगा वाली सोच बदले के होई यानी कि ई देश से भ्रष्टाचार तभी जाई जब ई देश की जनता अपने आप के बदली, घूस लेबे की प्रवृति से ज्यादा ई देश मा घूस देबे की प्रवृति है, जे के बदले के होई । क़ानून अपनी जगह है बबुआ बदलाव अपनी जगह।
इतना कहकर चौबे जी ने चौपाल अगले आदेश तक के लिए स्थगित कर दिया।
रवीन्द्र प्रभात
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