आज चौबे जी बहुत गुस्से में हैं । संसद के मॉनसून सत्र में मंहगाई और भ्रष्टाचार पर हो रहे बहस को कोरा वकबास ठहराते हुए कहते हैं कि “राजनीति में कुर्सी बड़ी चीज होत है राम भरोसे, जेकरा मिलत है बड़ी मुश्किल से मिलत है और जब मिलत है तs ऊ समय कुर्सी पावे वालन के खातिर स्वर्णकाल से कम नही होत। फर्श से अर्श की दूरी मिनटों में तय होई जात है। जे राजा बेटा होत है ऊ स्वर्णकाल कs आनंद लेत है और जे पप्पू होत है नs ऊ कबो पास नाही करत, काहे कि पास करे के खातिर राजा बेटा बनना राजनीति कs एगो अनिवार्य योग्यता हs। यदि भूल से कोई पप्पू पास कर भी जात है तs ओके छप्पर फाड़के तबतक नाही मिलत जबतक ऊ अपने पी. एम. कs राजा बेटा नाही बन जात । वईसे आजकल पी. एम. भी ऊहे होत हैं जेकरे पास दिशा-ज्ञान कम निशा-ज्ञान जादा होत है । अरे निशा के नही जानत ? निशा कs मतलब होला रात, जेकरे अंधरे में दी जात है आपन आका-आकी कs सौगात । फिर आका-आकी ई तय करत हैं कि कवन पप्पू हs और कवन राजा, जे बजा सकत है सब केहू के विश्वास में लेके भ्रष्टाचार का बाजा। अब देखss राम भरोसे, अपने पी.एम. साहब के। हो सकत है, पी.एम. बने की ख्वाहिश उनके मन में रहल होई, मगर बैठे-बिठाए अईसन स्वर्णकाल आई, ऊ सपना में भी ना सोचले होईहें। तभी तs आजकल ऊ जी भरके स्वर्णकाल कs आनंद ले रहल बाड़ें। भ्रष्टाचार के गटर से बाहर आ रहल गंदगी के ऊ मुखिया हौअन और सबसे मजा कs बात तs ई हs कि एतना सब भईला के बाद भी ऊ ईमानदार बाड़ें ? तू मानs या ना मानs मगर इहे सच हs बबुआ कि राजनीति मा ये से बड़हन ‘स्वर्णकाल’ अब कबो नाही आ सकत ? यानी ई समय राजनीति कs मेगा गोल्डेन टाईम हs। का समझे ?”
समझ गया महाराज,सब कुछ समझ गया “देश दिन-ब-दिन खोखला होई जात है तs ओ में हमरे पी.एम. साहेब के कवन दोष ? सफेदपोश, देश कs संपत्ति काला बनाबे खातिर दृढ प्रतिज्ञ बाटे। जनता का कर सकत है, उनके जे अधिकार मिलल रहे, ओकरा के तs ऊ बंटाधार कर चुकल बाड़ें।ई बात नेतवन के अच्छी तरह मालूम बा कि- मिलती है राजनीति में कुर्सी कभी-कभी….!” बोला राम भरोसे।
अरे का बात कहै हो राम भरोसे,हमरे मन मुताबिक़ एकदम्म मस्त बात कहै हो …जब ससुरी बाजेला चुनावी बाजा, कुछ दिन खातिर वोटर बन जाला असली राजा।सुन-सुन के कान थक जाला, कोई कहेला कि हम क्रान्ति लायेंगे, हर हाथ को रोजगार देंगे,तs कहू कहेला हर पेट को रोटी देंगे,हर तन पर कपड़ा होगा,हर सिर पर छत होगी,राम राज्य लायेंगे । सुनत-सुनत ६४ साल गुजर गए, नाही आया राम राज्य ….। ना गुलामी अच्छी थी ना अंग्रेज,वे पराये थे, राज करने आये थे इसलिए उन्हेंने हमपर कहर ढाए। पर लाखों शहीदों की कुर्बानी के बाद जे आज़ादी हमनी के मिलल रहे, जे सपना हमनी के देखले रहनी ऊ ६४ साल पूरा होत-होत आऊर डराबना हो गईल बाटे । जनता कंगाल हो गईल बाटे-नेता मालामाल हो गईल बाटे, बोला गुलटेनवा ।
इतना सुनि के तिरजुगिया की माई के ना रहल गईल, कहली कि ये देश मा लोकतंत्र कs एसे बड़ा मजाक आऊर का होई कि चपरासी तक की नौकरी कs खातिर मापदंड बनल बाटे पर नेतागिरी के खातिर कवनो योग्यता ना,कवनो कायदा-क़ानून ना ? आठ दर्जा पढ़ल-लिखल मनई हमरे देश मा चपरासी नाही बन सकत आऊर अंगूठा छाप नेता बनि जात हैं । छोटा-मोटा मारपीट कs मामला चपरासी की नौकरी कs राह में चीन कs दीबार बनि खडा होई जात है, वहीँ घोटाला पर घोटाला करे बाला ,सरेआम खून बहाबे वाला,रंगदारी वसूले वाला, जाति-धरम कs नाम पर एक-दोसराके भिडावे वाला नेता आऊर नेता से मंत्री कईसे बनि जात है ? ६० साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते आदमी के हाथ फाईल उठावे के लायक नाही रह जात, ओकरा के नौकरी से रिटायर कर दिहल जाला आऊर नेता लोगन के ६० बारिस के बाद मंत्री बना दिहल जाला ताकि जेतना जिनिगिया बचल बा,बटोर लs लोगन ।घोर कलिकाल आ गया है चौबे जी,घोर कलिकाल आ गया है । राजनीति मा करिया अक्षर भईंस बराबर मानल जाला और करिया धन के पवित्र मानल जाला ।चरित्र कs मामला में राजा भोज आऊर गंगू तेली के एक मानल जाला, केवल फाईल में व्यवहारिकता में नाही ।”
“एकदम्म सही कहत हौ चाची, हम्म तोहरे बात कs समर्थन करत हईं ।अब हमरे समझ मा आ गया चाची कि नोकरी-चाकरी मा अब ऊ बात नाही रही जे नेतागिरी मा है । नोकरी मा केवल आत्मा के संतुष्ट कएल जा सकत है, मगर नेतागिरी में करोड़ों कमाए बगैर, मन की धनभूख शांत नहीं होती। जब से ई बात कs खुलासा भईल हs कि देश के एगो बड़हन नेता महज कुछ बरसों में करोड़पति बन गया और अभी अरबों की संपत्ति का राज खुलना बाकी है, उसके बाद तो हम जैसे लोग नेतागिरी की तिमारदारी में लगे हुए हैं। हमरे भी जीभ लपलपाने लगा है नेता बने खातिर ।” बोला राम अंजोर ।
इतना सुनकर रमजानी मियाँ अपनी लंबी दाढ़ी को सहलाया और राम अंजोर से मुखातिब होकर बडबडाया ” अमा यार , ई का बकबक लगाए हुए हो ,तोहके आज समझ मा आया है का कि नोकरी-चाकरी से जादा फ़ायदा वाला काम हs नेतागिरी । एकदम्म सांच बात है ई कि बरसों कलम खिसते रहो, लेकिन इन नेताओं की तरह किसी भी तरह से करोड़पति-अरबपति कोई नाही बन सकत। हर दिन मेरा मन कचोटता है कि जब पैसा कमाने का द्वार खुला हुआ है, तो क्यों खुद को रोके बैठे हो ? भले ही आप कम पढ़े लिखे हो, अनपढ़ हो , मगर आपको थोड़ी बहुत भाषण देने आना चाहिए। नेताओं की एक खासियत होती हैं, वे अपनी उम्र व शैक्षणिक योग्यता तथा हवाला के जरिये मिलने वाले धन का खुलासा नहीं करते। स्वाभाविक भी है, हम जैसे थोड़ी न है, एकदम फक्कड़ लिख्खास। हम तो कह दिए हैं अपने औलाद से कि जीवन में कुछ करो या ना करो नेतागिरी जरूर करो । सबकुछ कायम रहेगा, पद,प्रतिष्ठा, प्रशंसा, प्रसिद्धि सबकुछ । “
इतना सुनि के चौबे जी रोमांचित हो उठे और कहे कि रामाजानी की बातों में दम्म है , हमारे देश की सबसे अच्छी पैदाबार है नेतागिरी । इतना कहकर उन्होंने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए चौपाल स्थगित कर दिया ।
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