चौपाल शुरू हो इससे पहले रेलगाड़ी के इंजन की तरह मुंह से ‘भुक्क-भुक्क’ बीडी का धुआं उगलते हुए गुलटेनवा पर तौआकर चौबे जी ने कहा कि "ससुरै गाँव वाले कबो ना सुधरिहें। उधर मंहगाई रुपी गिद्ध हम गाँव वालन कै नोच-नोच के खाए जात है और तुम हो कि अमीरी का सुख उठाये जात हौ।"

 इतना सुनके गुलटेनवा ने सुलगती बीडी को नीचे जमीन में रगडा और खीश निपोरते हुए बोला कि "आखिर मंहगाई से हमरे बीडी का लेना-देना, हम्म आपके कहे का मतलब नाही समझे महाराज !" 

 चौबे जी कुछ कहते उससे पहले राम भरोसे बोल पड़े," दिल्ली में बैठल सरकार के बित्त मंत्री जे अपना के बड़का अर्थशास्त्री बुझत हैं, उनसे पूछौ मंहगाई से हमरी बीडी का क्या लेना-देना है ?" 

 इतना सुनते ही गुलटेनवा नर्वसा गया, तभी पिच्च से तंबाकू की पीक थूकते हुए अछैबर बोले " ससुरा इत्ती सी बात नाही समझत। सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक़ गांव में जे लोग साढ़े छह सौ रुपल्ली से ज्यादा महीना भर में खर्च करत हैं, ऊ गरीब नाही हैं। उनके अब लाल कार्ड की जगह पिला कार्ड देबे की तैयारी में है सरकार। अब ई बताओ गुलटेन कि तुम मियां-बीवी और दो बच्चों के खाने-पीने, कपड़े-लत्ते, दवा-दारू और दो बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का खर्चा उठावे के बाद बीडी सुलगाके साढ़े छह सौ रुपल्ली से जादा खर्च करोगे कि कम ?"

 "जादा" बोला गुलटेनवा। "

अब बताओ अईसे में हम्म तोहके गरीब समझें कि अमीर ?" पूछे अछैबर। 

अछैबर की बात सुनकर गुलटेनवा भौंचक्का रह गया और बोला कि "साढ़े छह सौ नहीं भइया,हजार-डेढ़ हजार रुपल्ली वाला मासिक बजट हीं बनाके देई दे दिल्ली मा बैठल सरकार हम्म गाँव वालन के, त हम्म समझें उनके बड़का अर्थशास्त्री । रहने को घर नहीं,सोने को बिस्तर नहीं, सारा जहां हमारा। आग लगे ऐसी अमीरी को।" 

 इतना सुनके रमजानी मियाँ ने अपनी लंबी दाढ़ी सहलाई और पान की पिक पिच्च से फेंककर कत्थई दांतों को निपोरते हुए कहा " शुभानाल्लाह ! गांव के लोग भी बुद्धिमान होत हैं, ई हमको पहली बार एहसास हुआ है मियाँ । अमीरी के पीछे छिपी गरीबी का अर्थशास्त्र एक झटके में बूझ गए,मगर अमीरी के नाम पर ट्रंप कार्ड खेले वाली सरकार के नियत नाही बुझे अज तक। अरे शुक्र मनाओ कि इसी बहाने दो-चार रुपये प्रति किलो वाला मुट्ठी भर सड़ा-गला अनाज से मुक्ति मिल जायेगी हम सबको, मगर इसी बहाने हमरी गिनती टाटा, बिरला, मुकेश और अनिल अंबानी जैसे अमीरों में तो होगी, यह सुख कोई कम है का मियाँ ? खैर छोडो मियाँ वेबकूफ जनता और धूर्त सरकार पर दुष्यंत साहब का एक शेर अर्ज़ है कि - ये रोशनी है हकीकत में एक छल लोगों, जैसे जल में झलकता हुआ महल लोगो।" 

"सही कह रहे हो मियाँ। हंड्रेड परसेंट सही। अच्छा होगा कि सरकार गरीबी रेखा (BPL) की बजाय अमीरी रेखा का निर्धारण करे... जो लोग इस रेखा के ऊपर या इसके दायरे में आते हों उन्हें समस्त सरकारी रियायतों से वंचित कर दिया जाय... जो लोग इस रेखा के नीचे जीवन-यापन करते हैं, उन्हें पुनः दो श्रेणियों में बाँट कर रियायतों का भंडार खोला जाना चाहिए.. एक श्रेणी ऐसी हो जो आर्थिक मामलों को छोड़कर शेष अन्य लाभ प्राप्त करने योग्य मानी जाय जबकि दूसरी श्रेणी के लिए रियायतों की समस्त श्रेणियां खोल दी जाँय... लेकिन क्या कोई भी सत्ता इतना साहस दिखा सकती है..?" पूछा गजोधर । 

 इतना सुनके तिरजुगिया की माई आपे से बाहर हो गयी और कर्कश स्वरों में अपनी बात रखती हुई बोली " ई हमनी सब के दुर्भाग्य है कि लोकतंत्र की उल्टी परिभाषा रचे में हमरे नेता लोग कामयाब होई गए । आजतक जेतना सरकारी धन फाईल तक आयेल,नेता लोग अगर सही ढंग से लगने देते और अफसर लोग सही जगहिया पे ऊ धन के लगाते तो हमरे गाँव के साथ-साथ पूरे देश की तकदीर बदल गयी होती गजोधर। आज भारत गरीबी की कैद मा है और गरीबी फाईलों की कैद मा। फाईलें अफसरशाही की कैद मा । अफसरशाही नेताओं की कैद मा और नेता अपने आलाकमान की कैद मा । न नौ मन तेल होई न बित्त मंत्री नाचिहें। का गलत कहत हईं गजोधर ?"

 "अरे नाही चाची तू और गलत कबो नाही हो सकत। ई सच नाही हमरे देश खातिर कड़वा सच है चाची । हम्म तोहरी बात क समर्थन करत हईं ।" खीश निपोरते हुए गजोधर बोला। इतना सुनके बड़कऊ काका बहुत सीरियस हो गए। भारी मन से कहा कि " हम्म मानत हईं कि अंधेर नगरी मा चौपट राजा बनी गए हैं मगर सबसे बड़ा सवाल ई है बचवा, कि ई चौपटानंद के बकबास काम करै से रोकिहें के ?" 

 इतना सुनिके चौबे जी बोल पड़े, ‘सरकार पगला गई है चच्चा। अब बहुत समझदार हो गयी है भारत की जनता । यू.पी. मा माया मोह के पटकनी देके साबित भी कर चुकी है । थोड़ा सा धैर्य रखो अगले चुनाव मा दूध क दूध पानी का पानी हो जाएगा।" इतना कहकर चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया। 

() रवीन्द्र प्रभात 

2 comments:

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