नंगे बदन लुंगी लपेटे बैठे हैं। प्लेट में चाय उड़ेल कर सुड़प रहे हैं । तोंद कसाब मामले की तरह आगे निकली हुई है। सफाचट सर, मूंछ में चाय की बूँदें अटकी हुई मनमोहनी मुस्कान बिखेरते हुए मुँह ही मुँह बुदबुदा रहे हैं कि-"जब आम के आम न आये, गुठली के दाम न आये अऊर कवनो रोजगार मा लाभ ना आये, तो बन जईयो निर्मम बाबा । हमार मतलब है निर्मल बाबा। चार्टन विमान से चलियो, फाइव स्टार होटल मा रहियो अऊर खयियो अंडे का मुरब्बा और डकार करके कहियो आईयो रब्बा। न नेतागिरी मा, न दादागिरी मा, बड़ा मजा है भइया बाबागिरी मा। धर्म के नाम पर तथाकथित धार्मिक प्रोग्राम देखा के ससुरी टी.आर.पी. बटोरे के चक्कर मा धर्मिक अउर अधार्मिक टी.वी. चैनल तलवा चाटिहें अऊर कहिहें न काशी की, न काबा की, बोलो जय बाबा की। माया-मोह से परे हचक के विज्ञापन बटोरिहें आ ओकर झोली भरि दिहें जेकर धर्म से दूर-दूर तक कवनो संबंध नइखे । नेत-धरम गुनाह, कुल्हि करम पइसा, बाबा हो तो आइसा ।"
इतना सुनि के राम भरोसे बोला, "सही कहत हौ चौबे बाबा.......हम तोहरी बात क समर्थन करत हईं ।"
"चौबे बाबा" शब्द-संवोधन सुनते हीं तमतमा गए चौबे जी । कतरी हुई सुपारी के दो लच्छे मुँह में झोंक कर बोले -"चुप कर ससुरा, बाबा मत कह हमके, ई बाबागिरी के नाम से हमके उबकाई आवत है । जईसा कि धर्म में कहा गया है ‘धरेतिसः धर्मः’। माने कि देश अउर काल के हिसाब से उचित अनुचित के निर्धारण कईके ओकेरा अनुसार व्यवहार कइल धरम है । इहे लिबर्टी के फ़ायदा उठाके कोल माईन के ठेकेदार बनि गए धरम के बड़हन ठेकेदार । जिनके चित्त अऊर पित्त निर्मल हो नहो, धनप्रवाह से बैंक एकाउंट निर्मल जरूर होई गए हैं। एगो कहाउत ह राड़, साँढ़, सीढ़ी, सन्यासी , एहसे बचे त सेवे काशी। कहाउत कहल त गइल बा काशी के बारे में जहाँ के राड़, ठग, सीढ़ी आ साधु सबही एकसे बढ़िके एक होलें । मगर अब ई परंपरा पूरे देश मा लागू होई गए हैं । यानी राड़, साँढ़, सीढ़ी, सन्यासी, एहसे बचे त भारतवासी ।"

इतना सुनि के अछैबर से नहीं रहा गया,बोला- " बाबागिरी इतना आसान नाही है चौबे जी,जेतना आसान आप समझ रहे हैं। कन्टेसा से चले वाला, ए.सी. मंच से चार-चार सुंदरियों के मध्य बैठकर सुखों का परित्याग करे वाला अपने गाँव का बाबा प्रेमानंद कह रहे थे कि जहां भी जा रहा हूँ मुझसे पहले 'लोकल बाबा' पहुँच जा रहा है, मैं जिस प्रवचन के दस लाख लेता हूँ ससुरा दो लाख में ही निबटा देता है। रेट बिगाड़ दिया है पट्ठे ने। सोचते हैं बाबाओं का एक यूनियन बना ही डाला जाए । ताकि रेट फिक्स हो जाए कि समागम का कितना लेना है और झार-फूंक का केतना। इसमें हम लोग एक्सरसाईज कराने वाले बाबाओं को भी शामिल करेंगे ताकि विभेद न रहे। गोरमेंट को जो इमोशनल ब्लैकमेल करके बाबाओं को टेक्स के दायरे से दूर रखेगा उस बाबा को दिग्विजय सिंह की तरह महामंत्री बनाया जाएगा। बाबा लोगों की कितनी महान सोच है चौबे जी ?"
इतना सुनते ही गुलटेनवा चहका और भीगी हुई सुपारी की तरह मुरझाकर बोला-"और कवनो बाबा के हम नाही जानत, मगर हमारे गाँव के बाबा चुट्कुलानंद का कहना है कि क्या लेकर आये हो, क्या लेकर जाओगे। इसलिए निवृत्तमार्गी बनो, माया-मोह को त्यागो, तुम्हारे पास जो भी है उसे बाबाओं को समर्पित कर दो और खुद ठन-ठन गोपाल बनकर भगवान् गोपाल की शरण में चले जाओ। तुम्हारा अवश्य कल्याण होगा बच्चा।"
इतना सुनते ही रमजानी मियाँ ने पान की पिक पिच से फेंकते हुए कत्थई दांत निपोरकर बोला-"बरखुरदार, हम कुछ बोलेंगे तो बोलोगे कि बोलता है। इसलिए हम कुछ नाही बोलेंगे।
तभी भगेलू ने जिदियाते हुए पूछा, कि " हमार साला त्रिलोकी के घाटा लग गईल कपड़ा की दुकानदारी मा । उहो बाबा बने के चाहत हैं, ओकरे पास भी चार-चार बैंक मा एकाऊंट है चौबे जी, कोई तरकीब बताओ ताकि ऊ भी ससुरा बनि जाये त्रिलोकी से बाबा त्रिलोकी नाथ।
तभी चुटकी लेते हुए चौबे जी ने कहा, हमारे पास है तरकीब !
चौंक गया भगेलू, बोला "बताईये महाराज !"
" चौबे जी ने कहा पहिले 100 के हरिहर नोट दक्षिणा में निकालो फिर बताएँगे, बाबा चरित्रं मुफ्त में थोड़े न सुनायेंगे !"
उसने 100 के नोट निकाले, और चौबे जी को थमाया, कड़े-कड़े नोट देख चौबे जी का मन ललचाया और बाबा बनने के नुस्खे उसने कुछ इसकदर फरमाया !"
भावना में मत बहो, जो भी कहो सच न कहो, ईश्वर का खौफ दिखाकर लूटो, क्योंकि हर लूटने वाला या तो अपराधी होता है या बाबा.....जिस दिन बाबा बन के दिखाओगे, सब जान जाओगे !"
बाकी क़ल बताएँगे जब आप दक्षिणा में फिर कुछ लेकर आयेंगे !
महाराज ये तो ठगी है ....!
नहीं बच्चा यही तो बाबा लोगों की जादूई खूबी है !
इतना कहकर चौबे जी ने चौपाल को अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया !
- रवीन्द्र प्रभात
0 comments:
Post a Comment
Click to see the code!
To insert emoticon you must added at least one space before the code.