मंत्रिमंडल विस्तार में उत्तरप्रदेश की कम भागीदारी सुनि के रामभरोसे एकदम से सेंटिमेंटल हो गईले आ मुड़ि पीटत सनकाह अस चौबे जी के चौपाल आ गइले. चौबे जी से पूछले कि – महाराज हम ई का सुनऽतानी कि केंद्र में यू.पी. से खाली तीने मंत्री रहिहें ……अगिला साल इलेक्सन मा का ख़ाक लडिहें कमजोर मंत्री के पिछलग्गू बनके ? एक के बाद एक भईल घोटालन से उबल जनता सोचत रही कि मंत्रिपरिषद के फेरबदल मा भ्रष्ट लोगन के निकाल दिहल जाई, लेकिन अइसन लोग के बनाए रखके साबित कर दिहलें हऽ कि ऊ भ्रष्टाचार से लडे खातिर ज़रा भी प्रतिबद्ध न हऊहन।चांदी की थाल में गोबर परोस दिहलें प्रधानमन्त्री जी। जबसे ई सरकार बनी है कहीं घूसखोरी, कहीं भ्रष्टाचार तऽ कहीं मजबूरी साफ़ दिखाई देत हैं ….अब तऽ कहिहीं के पडी कि फिर एक बार साबित भईल “मजबूरी कऽ नाम हऽ मनमोहन सिंह।”
चौबे जी कहले – ए बुड़बक, मजबूरिये से मजबूती आवेला नऽ । तू ना समझबऽ प्रधानमंत्री जी के लगे बड़ा बरियार करेजा बा. अतना बरियार कि ओह में सबकुछ समा जाला. यानी बाबा रामदेव कऽ हठ योग, अन्ना का सत्याग्रही असहियोग, भ्रष्ट मंत्रियों का घोटाला भोग और विपक्ष कऽ शैतानी प्रयोग…..मजबूरी के बोझा उठावत-उठावत ऊ न खाली अपने बरियार हो गईले, सरकारो के बरियार कऽ दिहले. गठबन्धनो के बरियार कर दिहले. जबे उनुका इस्तीफा का बारे में पूछल जाला ऊ बड़ा मजबूत जवाब देलें कि “अबहीं नाहीं.” । अरे बहुत बड़हन घाघ हएं हमरे प्रधान मंत्री, इनके जे कमजोर कही ऊ खुदे कमजोर हो जाई ।
एकदम्म सही कहत हौ चौबे जी, हम तोहरे बात कऽ समर्थन करत हईं । उनका लगे अतना बरियार करेजा बा कि केहू कुछऊ कहि देउ, ऊ उखड़ेले ना, मजबूरी का नाम पर अतना मजबूत प्रधानमंत्री शायदे कवनो देश में होखो. एह मामला में हमनी का अपना के धन्य बुझे के चाहीं. इहे नाहीं, प्रधानमंत्री जी सुभाव से अनबोलता हउवन. जब कोंचल जाई तबहियें बोलिहें। असल में मैडम उनुका से अतना कहि बोलि देली कि उनुका बोले के कुछ ना रहेला। एही से ऊ चुप रहल निमन बुझेले. आउर केहू के घोटाला कइला पर प्रधानमंत्री के निमन बाउर कहल ठीक नइखे. काहे कि एगो पी॰एम॰ आ अतना मंत्री. केकरा कवन दांव भेंटाइल बा ऊ एगो मजबूर प्रधानमंत्री कइसे जानी। ऊ त प्रधानमंत्री हउवें, कवनो जासूस ना नू. अब लईका गार्जियन के बात नइखन स सुनत त एह में बेचारा गार्जियन के कवन दोष ? कइसन रीत बा कि कइल केहू आ भोगे के पड़ऽता दोसरा के। अब घोटाला त कइल मंत्री नेता अफसर लोग आ सफाई मांगल जा रहल बा प्रधानमंत्री से। आ उहो एगो मजबूर प्रधानमंत्री से। अब महँगाइये का बात करीं ना । ऊ घटत हइये नइखे. नेता बेपारी खात कमात बा लोग आ गारी सुने के पड़ऽता प्रधानमंत्री के। मजबूर बेचारा सुनऽता…सुनी नऽ तऽ का कारी……..गुलटेनवा बोला ।
उ सब तऽ ठीके बा गुलटेन भईया लेकिन कहीं ई देश की जनता मिस्र के नाहिन मजबूर हो गइल तऽ ? गजोधर कहले
जाये द गजोधर, एकर उत्तर देबे में हम मजबूर बानी.बोली तिरजुगिया की माई ।
इतना सुनकर रमजानी मियाँ झुंझलाया और अपनी लंबी दाढ़ी सहलाते हुए फरमाया कि बरखुरदार ई उत्तर प्रदेश है कवनो त्रावणकोर नाही जे आकूत खजाना अपने पेट में डाले खातिर भारीभरकम मंत्री चाहिए। सत्यानाश हो विपक्ष का जे बेचारे प्रधान मंत्री की मजबूरी नही समझते और आये दिन आरोप रुपी गुलगुला छोड़ते हैं. भ्रष्टाचार के नाम पर प्रदर्शन रुपी पटाखे फोड़ते हैं। चौका-छक्का मारे के चक्कर में खुद अपने ही घर का शीशा फोड़ते हैं। देखो मंहगाई पर प्रधान मंत्री जी कुछ बोले,नहींऽ नऽ…मतलब समझो प्रधान मंत्री जी सोचते हैं कि ऊँची हैसियत के लोगों का पहिले विश्वास जीतो, उसके बाद तो माध्यम और निचले तबके के लोग अपने आप शरणागत हो जायेंगे, कितनी बड़ी सोच है हमरे प्रधान मंत्री की गुड़ खाओ गुलगुले से परहेज रखो…फिर भी तुम लोग कहते हो मजबूर है हमारे प्रधान मंत्री जी। का गलत कहत हईं चौबे जी ?
नाही बचवा, तू कबो गलत नाही कह सकत हौअऽ …धीरज कऽ मामले में केहु सीखे हमरे प्रधान मंत्री से, बिन बजाबत-बजाबत ससुरा सपेरा थक के चूर हो जाई मगर बिल से ना निकलिहें तऽ ना निकलिहें। संन्यास लिहल चाहते के बा, जबतक मैडम के इच्छा बनल रही उनके बैठिहीं के पडी कुर्सिया पर,भले मजबूरी में ही बैठिहें लेकिन बैठिहें जरूर।अब एकरा बावजूद कोई कहे मजबूरी कऽ नाम मनमोहन सिंह त कहे द का फरक पड़ी……इतना कहकर चौबे जी ने अगले आदेश तक के लिए चौपाल स्थगित कर दिया।
रवीन्द्र प्रभात 

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