रामभरोसे की कल की बतकही से नाराज चौबे जी  ने आज चौपाल में घोषणा की कि कोई भी व्यक्ति विवाद वाला विषय नही उठाएगा ,धरीछन ने अपनी सहमति जतायी और बारी-बारी से बटेसर,असेसर और बालेसर ने भी हाँ में हाँ मिला दिया ।

उमस ज्यादा है इसलिए चौपाल लगी है राम भरोसे की मरई मेंचुहुल भी खुबै है आज ।  चौबे जी को दिल्लगी सूझीमचरै मचर करे जुतवा उतारिके बैठ गए दरी बिछाके और कहें कि- "देश के सुघड़कर्तव्यनिष्ठ आऊर संवेदनशील नागरिक होए के नाते हमहूँ चाहत हैं कि हमके मिले महामहिम की कुर्सी । हमहूँ देखे के चाहत हईं कि आखिर काईसन होत है ई कुर्सी, जेकरे खातिर होई जात है नेता लोगन के बीच ससुरी घुथ्थम-गुत्था, मातम पुरसी। जब राति मा चार-चार छमकछैलों के संग रास रचावेवाला कानून मंत्री बन सकत हैं,पेट्रोल पिये वाला बित्त मंत्री और बिना सिर पैर के बात करेवाला शिक्षा मंत्री बन सकत हैं त हम महामहिम काहे नाही बन सकत हईं राम भरोसे ?"

"एकदम्म सही कहत हौ चौबे जी , विलकुल सोलह आने सच । जब क्रिकेट के भगवान राज्यसभा मे जा सकत हैं तो आप जईसन निठल्ला भक्त महामहिम की कुर्सी तक काहे नाही जा सकत है महाराज ? हमारे समझ से राष्ट्रपति बने मे कवनों रिस्क भी नाही है ।भ्रष्टाचार रूपी प्यार की  पुंगी पक्ष-विपक्ष के नेता लोग एतना बजा लेत हैं कि कायदे से राष्ट्रपति भवन पहुंच ही नहीं पाती। अगर राष्ट्रपति बनी गए चौबे जी आप तो हचक के खइयो और लंबी चादर तान के सो जईयो । न उधो से लेयो न माधो को देयो।" खैनी दोनों होठ के नीचे दबाते हुये बोला राम भरोसे ।

इतना सुनते ही मुंह बिचका के बोला गुलटेनवा , कि "बाबा ! राष्ट्रपति के चुनाव मा पोजीसन बहुते टाईट है, पक्ष-विपक्ष मा जबर्दस्त फाइट है । मंहगाई डायन के हवाले देश की अर्थव्यवस्था करे वाला मायावी बित्त मंत्री भी लाइन मा है, वहीं राजनीति से सन्यास लेके रात-रात भर पिये वाला एगो नटुला दाँत निपोर पूर्व लोकसभा अध्यक्ष भी है पाइप लाइन मा। अपनी मीरा बहिनी की भी ऐसी लगन लाग गयी कि पुछौ मत, लोकसभा के भीतर होत जूतम-पैजार से ऊबके परम आनंद वाली कुर्सी पर बैठे के तैयारी मा है बहिनी । उधरसत्ताधारी और विपक्षी पार्टी के नेता लोगन के भी कमरकस वाले तैयारी है बाबा, कि प्रतिभा ताई उतरीं नहीं चुनाके बंदा कूदी के चढ़ जइहें परम आनंद वाली कुर्सी पे ।"

इतने मे रमज़ानी मियां ने अपनी लंबी दाढ़ी सहलायी और पान की गुलगुली गाल मे दबाते हुये फरमाया कि "बरखुरदार, बचपन मे एक कहानी सुनी थी । एक दयालू राजा के राज मे भयानक सूखा पड़ा। जनता दाने-दाने को मोहताज । अपनी जनता को बचाने के लिए राजा ने खजाने के मुंह खोल दिये । मंत्री से संतरी तक को राहत के काम मे लग जाने को हुक्म हुआ । राजा का आदेश सिर माथे पर। रोज बेथाह दौलत राजमहल से बाहर जाती और संतरी से लेकर मंत्री तक मे बाँट जाती । थोड़ी-बहुत जनता तक जाती भी तो वे मंत्री और संतरी के नातेदार और रिश्तेदार ही होते । सिपहसालार राहत के लंबे-चौड़े कारनामे रोज राजदरबार मे सुनाते रहे । इधर राजा साहब के जै-जैकार, उधर रोज सैकड़ों लोगों की मौत पर हाहाकार। एक रात राजा साहब की नींद टूट गयी, गलियारे मे घूमने लगे, पहरेदारों को एहसास नहीं हुआ, वे रोज की कमाई पर बतियाते रहे, कड़वा सच राजा के कानों मे गया। सेनापति को बुला भेजा । राहत के काम मे लगे हर आदमी का सिर कलाम करने का फरमान सुना दिया । राजा-रानी ने दरबार छोड़ा, राहत के काम की बागडोर अपने हाथ मे ले ली, इससे पहले जितनों की किस्मत में मारना लिखा था, वे मर गए और जो जिंदा थे उन्हें बचाने में राजा ने कोई कसर नहीं छोड़ी। ऊपर वाले ने भी साथ दिया, बारिस हुयी फिर चमन आवाद हुआ । ये महज एक कहानी हो सकती है मियां पर इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि न तो अब ऐसी राजशाही है और न न ही राजा । हाँ इस कहानी से मिलते-जुलते संतरी से मंत्री तक जरूर मिल जाएँगे ढकियाभर। हमारा लोकतन्त्र तो राजशाही से भी बदतर है चौबे जी, एकदम्म भानुमती का पिटारा है पिटारा । इसी मौजू एक दुष्यंत साहब का एक शेर सुन लेयों मियां, अर्ज़ किया है - तू खड़ा होके कहाँ मांग रहा है रोटी, ये सियासत का नगर सिर्फ दगा देता है । "

शेर सुन के उछल पड़ा गुलटेनवा, लगा ज़ोर-ज़ोर से ताली बजाने .....रमज़ानी मियां को यह नागवार गुजारा बोले- "देख गोविंदा जैसन दांत मत निपोड़ हंस मत .....हमारी बात को खाज-खुजली पर लगाने वाला मलहम नहीं समझो मियां कि जहां लगाओगे वहाँ ठंडा लगेगा ।"

अचानक बीच-वचाव करने के ख्याल से बीच बहस में कूद पड़े चौबे जी और कहा कि " हमारी बात को बिना मतलब के बतंगड़ बनाए दिये तुम लोग । अरे हम्म राष्ट्रपति की कुर्सी ही तो मांगे हैं कवानों आली बाबा का खजाना तो नाही मांगे हैं कमबख्तों । आपनटारगेट कुछ और है। सुना है बहुत खापसूरत है महामहिम के रहे वाला घर । सोचत हईं एक तो हम इत्ते बड़े घर में काबों रहे नाही। रहे क्या गए भी नाही गाँव मा अपने पास एगो टुटही मड़ैया है लईकन सब हमनी के साथ  झोपड़िया में अडस जात है । हमके पंडिताइन के संगे रोमांटिक गूटरगूं करेके मौके नाही मिलत । सोचत हईं राष्ट्रपति भवन के एरिया जब बहुते बड़ा है तो लाईकन-फाईकन के मम्मी के संगे रोमांटिक टौक करे के खुबै मौका मिलिहे। मुफ्त में दुनिया के सैर अलग से । यानी सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया ।"

चौबे  बाबा की जय जयकार के साथ चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दी गयी....!

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