रामभरोसे का बेटा जबसे लौटा है मुम्बई से, कहता है की “पछुवा का धुक्कर चल रहा है, एक्को गो मकई मे दाना नहीं धरेगा उल्टे घमवा मे पसीना चुएगा सो अलग। ई खेती बारी का धंधा बहुते गंदा हो गया है बाबू जी । जो लागत है ऊ त डुबबे करेगा ससुरा ऊपर से चढ़ेगा कर्जा । एकरा बाद भी हाकिम की नज़र मे दोयम दर्जा । काहे करें खेती,काहे न जाएँ बंबे, जहां एक मे एक मिलाओ ग्यारह हो जाता है चुना लगा के ।“
ई बात सुनिके राम भरोसे एकदम्म सेंटीमेंटल हो गया और मुड़ी पिटत सनकाह के जैसा आ गया चौपाल मे और बोला कि “ई बताइये चौबे जी, किसान माने का ?”
चौबे जी अपने पेट के भूगोल पर हाथ फेरते हुये मंद-मंद मुस्कुराके बोले “चिरकुट”
“का मतलब ?”
“मतलब ई राम भरोसे,कि अन्नदाता होके भूखा सोये वालन के चिरकुट ना कहल जाई त का कहल जाई ?” एतना कहि के चौबे जी मुँह में सुर्ती दबा लिहले ।
“सही क़हत हौ महाराज, किसानों के पास जब पेट ही नहीं है तो भूख काहे का ? पेट तो खाली नेताओं के पास होत है । पाँच लाख के हाथी, सैंतालीस लाख ढुलाई .....जय हो,जय हो महामाई, मुबारक हो अइसन कमाई।“ सिर खुजलाते हुये गुलटेनवा बोला ।
“ई का क़हत हौ गुलटेन,किसानन के पास पेट नाही होत....? अरे होत हैं पेट किसानों के पास भी होत हैं, मगर किसानन के पिचकल पेट केकरो दिखाई नाही देत । एही मा जे नेता टाइप किसान होत है ओके लूटे खातिर मनरेगा मिलत है, कुटे खातिर ठेकेदारी और फूटे खातिर असलहा । मनरेगा मा सटहे-सटहे प्रधान होई गए मालामाल और जेकरे खातिर गावें-गावें मनरेगा भेजाईल ऊ होई गए कंगाल । हम्म तो यही सलाह देंगे राम भरोसे भैया कि बेटे की बात मान लेयों, एक और एक ग्यारह कमाओ । कब तक छुटभैये बने रहोगे अब तो बड़े बन जाओ ।“ बोला गाजोधर ।
इतना सुनि के तिरजुगिया की माई पगला गईली आ सनकाह अस चिल्ला के कहली कि जब दुनिया सोवत हए तs हमनी के जागत हईं जा। जब हर तरफ खुशियाँ होत है तs हमनी के रोवत हईं जा।हमनी के अन्नदाता हईं फिर भी भूख से बेहाल रहत हईं जा। १२ महीना ऊपर वाला भी हमनी परीक्षा लेत रहत हएं। कभी हमनी के पानी से मारत हईं जा तs कभी बिना पानी के। तनिको भईल मौसम नाराज हमरी मेहनत मटियामेट होई जात है।आखिर हम किसानन खातिर का बा भारत निर्माण के मायने ? बोली तिरजुगिया की माई।
चौपाल का माहौल गंभीर देखिके अपनी लंबी दाढ़ी सहलाया और स्क्रीनयुक्त हंसी से मुसकुराते हुये रमजानी मियाँ ने फरमाया कि “मियां राम भरोसे, न फिल्म, न जुआ, न शराब । काहे को अपने बेटे की जबानी कर रहा है खराब । अरे भोंदू, प्रेक्टिकल बनो । क्या रखा है खेती मे-बारी मे, बिना मतलब के ईमानदारी मे। टके-दो-टके का चक्कर छोड़िए बरखुरदार,लाखों में-करोड़ों में कमाइए । कलमाड़ी जी की तरह आप भी बड़े बन जाइए । खुदा-न-खास्ता कुछ ऊंचा-नीचा हो भी जाये तो घबराने की कोई जरूरत नहीं । जब कोनिमोझी और राजा को जमानत मिल सकती है तो राम भरोसे की क्यों नहीं ? इसी विषय पर दुष्यंत साहब का एक शेर अर्ज है कि दिन में जुगनुओं को पकड़ने की जिद करे,बच्चे हमारे दौर के चालाक हो गए ।“
इतना सुनिके चौपाल में आए हारल प्रत्याशी यानि खुरपेंचिया जी चहकने लगे और बोले कि “ समझ में नहीं आता कि ससुरी बईमानी हमरी सभ्यता मा घुस गयी है या सभ्यता बईमानी मा। ई कलमुँही राजनीति रात मा गजरा पहिनके अभिसेक्स मनु सिंघवी के साथ सोवत है और अहले सुबह उठके फर्जी सी डी की दुहाई देके मुंह बिचका लेत है । कब्बो कलमाड़ी के पुट्ठे पर हाथ फेरत है तो कब्बो चिदंबरम साहेब के दिखिके शर्मा जात है । ऐसे में जब राजा कान के पास आके बाजा बजावत है तो कहती है मैं मायके जा रही हूँ तू ससुराल जा। अपने बाबा नारायण दत्त रजनीतिया के साथ इतनी बार हम विस्तार हुये हैं कि उन्हें खुद भी नहीं पता कि वे दिनू के पप्पा हैं या रामदीन के अब्बा । मगर है जिबट वाला आदमी एकबार बलड सैंपल न देने की कामिटमेंट कर लिया तो फिर अपनी भी नहीं सुनता।“
खुरपेंचिया जी की बात सुनिके चौबे जी ने कहा कि “ आपको समझने की जरूरत नाही है नेता जी, अब हम्म ही लोगन के कुछ करे के पड़ी, जैसे लक्ष्मण सिलवेनिया के विज्ञापन की तरह हम्म लोग पूरे यू पी की बदल डाले, अगिला चुनाव मा केंद्र की भी बदल डालेंगे।तबतक हारिए न हिम्मत बिसारिए न हरीनाम ।“ इतना कहके चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया ।
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कैसी पंगु है राज्यों में ऑडिट प्रणाली. एक चारा खा गया एक के हाथी खा गए
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