आज चौबे जी की चौपाल लगी है राम भरोसे की मडई में । चटकी हुई है चौपाल । चुहुल भी खुबै है । खुले बरामदे में पालथी मार के बैठे हैं चौबे जी महाराज और कह रहे हैं कि “ फुसफुसाहट वाली गुदगुदी के मजा कुछ अलग होत है रामभरोसे। एक कान से सुनके तुरते दोसरको कान लगौला के बाद जे गुदगुदी होत है ओकर मजा ओरिजिनल गुदगुदी मा कहाँ ? ओरिजिनल गुदगुदी मा परमानंद की प्राप्ति नाही होत मगर ई गुदगुदी मा अपने आप होई जात है । अब हमके समझ मा कुछ-कुछ आइल कि लोग बेगानी शादी मा अब्दुल्ला काहे बनि जात है ?”
“काहे बनि जात है चौबे जी ?” पूछा राम भरोसे ।
“बात ई ह कि शादी में होखे त होखे, शादी टूटे-बिखरे लागेले तबहियो फुसफुसाके चटखारा लेबे में मजा आवेला । अब देखो फिल्म अभिनेत्री रेखा के नाम राज्य सभा खातिर केंद्र के सरकार बहादुर मनोनीत कइले, फुसफुसाहट तेज हो गइल । रसगर मजगर कहानी गढ़ाए लागल कि ओहिजा पहिले से जया बच्चन बाड़ी । कहाँ बइठी लोग, एक संगे बइठी कि ना, बइठी त बतियाई कि ना, वगैरह वगैरह। एकरे कहल जाला फुसफुसाहट के परमानंद। समझ मा आया कि नाही ?” चौबे जी ने पूछा ।
“समझ मा आ गया महाराज,सब कुछ समझ मा आ गया । मगर ई गुदगुदी का श्रेय मीडिया वालन के देवे के पड़ी, काहे कि वेगानी शादी मा अब्दुल्ला उहे होत है । दीवाना बनिके आम जन के अईसन गुदगुदावत हैं कि पुछौ मत । पुरान खाज के खजुलावे जइसन सुख मिलत है ससुरी । सवतिया डाह के खबर जइसन सुख परनिंदो में ना मिले। अब फेर बात आवत बा संसद में । प्रश्न ई नाही है ससुरी कि संसद व्यवस्था की रखेल है या व्यवस्था संसद की । प्रश्न ई है कि सांसद को चोर या चोर को सांसद काहे नाही कहा बाबा ने चोर को चोर काहे कहा । बात बस एतनी सी, बतंगड़ कोस भर।“ बोला राम भरोसे ।
“ई का क़हत हौ राम भरोसे भईया, फुसफुसाहट वाली गुदगुदी के पेटेंट खाली मीडिया के लगे ह का ? नाही हो फुसफुसाहट वाली गुदगुदी सबसे जादा लागत है गाल बजाने वाले नेतवन की हरकत से । काहे कि गाल बजाने वाले नेताओं में तीन गुण होत है । पहिला गुण आंखि बचाके चोरी करने का, मौक़ा मिल जाए तो हवाला-घोटाला-फिरौती और डकैती करने का और तीसरा गुण होत है आलाकमान के खासमखास बने रहने का। आईसन नेता लोग जनता के गुदगुदावे के कवनों कसर नाही छोड़त । काहे कि नेता मतलब अकिल वाला जोकर और जनता मतलब गुदगुदी वाला मूरख । अपने खुरपेंचिया जी ठीके क़हत हए कि दुनिया में मूर्ख बनने वालों की कमी नहीं है, बस बनाने वाला चाहिए ।“ गुलटेनवा बोला ।
इतना सुनके रमजानी मियाँ ने अपनी लंबी दाढ़ी सहलाई और पान की गुलगुली दबाये कत्थई दांतों पर चुना मारते हुए कहा कि "लाहौल विला कूबत, इ गुदगुदी है ससुरी कि बेहयाई। अरे मियां, इस मुल्क का दुर्भाग्य है कि सरासर बेवकूफों सी बातें कर के बेवकूफ बनाने वाले बाबा लोग मीडिया को गुदगुदा रहे हैं और अपनी गुदगुदी जनता को ट्रांसफर कर रही है मीडिया । रही बाबा की बात तो वे पेट सिकोड़ने की कला मे माहिर हैं, इसलिए उन्हें गुदगुदी होती ही नहीं । वैसे बाबा रामदेव से बड़ा एक और बाबा पैदा हो गया है मियां जो बिना पेट सिकोड़े गुदगुदा देता हैं । अरे वही अपना सपना मनी-मनी वाले निर्मल बाबा । ये बाबा सलवार कमीज नहीं पहिनते सिंहासन पर पैजामा पहिनके बैठते हैं और साफ-साफ कहते हैं कि मैं तो सारी दुनिया को उल्लू बनाके लूटो सू, कोई म्हारों का कर लेगो । किसी के पेट गुदगुदाए या खाज निकाल आए, हमको का मतलब । अपना सपना मनी-मनी । किसी ने ठीक ही कहा है बरखुरदार, कि हमरे देश की जनता भूकंप से भी बड़ी है,आज़ादी के बाद से झटकों पर खड़ी है ।“
रमजानी मियां की बातें सुनकर उछल पडा गुलटेनवा। करतल ध्वनि करते हुए बोला "वाह-वाह रमजानी मियाँ वाह, क्या मस्त शेर सुनाये हो मियाँ ! एकदम्म झक्कास बातें कही है तुमने। बाबा और नेता मिलके पहिले भी खात रहले ह, आजों खात बाड़े और कालहों खइहे। मगर ओकरा बदला मे जे जनता के हौअइनी-खजुयइनी मिलेला बड़ा आनंदायक होला । एह महंगाई के जमाना में लोगन के गुदगुदी वाला फोकटिया सुख मिल जात है मीडिया के कारण, इ कम ह का ?”
इतना सुनके तिरजुगिया की माई चिल्लाई क़ि “सावन के अंधे को हरतरफ हरिहरी दिखाई देता है, चाहे केंद्र के शातिर नेता हो चाहे पेट सिकोड़े वाले बाबा सब एक ही थैले के चट्टे-बट्टे हैं चौबे जी । ऊ दिन दूर नाही जब कवनों राम रहीम और रामदेव जईसन दुनिया के अपने पीछे लगावे वाला निर्मल बाबा भी अपने पाँव के पास एक से एक दरिद्र नेता के बैठइहें, उनका के अपना सपना मनी-मनी फिलिम देखइहे और साथ मे जैकारा लगईहें । हंसिहे हमनी के मूर्खता पर । मीडिया से हमनी के हौअइनी- खजुअयिनी वाला मलहम मिली इ कहके कि ल बेटा लगाल खाज पर आऊर चादर तानिके सूत जा । जहां लगइब उहाँ ठंडा लागि ।“
तिरजुगिया की माई की बतकही सुनके चौबे जी सिरियस हो गए और उन्होंने कहा कि "तोहरी बात मा दम है तिरजुगिया की माई, मगर ई दोखेवाज़ नेता और बाबा की बात छोड़ो आओ बात करत हैं एगो और फुसफुसाहट वाली गुदगुदी से । सुना है कि जबसे अखिलेश बबुआ यू.पी. के गद्दी संभालले ह, तब से कुछ नौजवान नेतवन के मेहरारू धमकी दे दिहीस है कि अगर अपने प्रदेश में मुख्य मंत्री नहीं बने तो “छोड़-कर मायके भी चली जाएंगी।” एमे विशेष कर ऊ महरूरअन है जे “कांग्रेस दरबार और राहुल गाँधी के बहुत करीबी मानल जात हैं।“
एतना सुनी के तिरजुगिया की माई चौंकी और बोली-“सच्ची”
चौबे जी ने मंद-मंद मुस्कुराते हुए कहा-“मुच्ची"
"धत्त, नज़र ना लगे हमारे अखिलेश बबुआ के।“
चौपाल ठहाकों कें तब्दील हो गया और इसी के साथ चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया ।
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