आज चौबे जी की चौपाल लगी है राम भरोसे की मडई में । चटकी हुई है चौपाल । चुहुल भी खुबई है । खुले बरामदे में पालथी मार के बैठे हैं चौबे जी महाराज । यूट्यूब से लेकर फेसबुक तक, ब्लाग से लेकर पोर्टल्स तक सिंघवी की टहलती मुंह चिढ़ाती सेक्स सीडी पर त्वरित प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहते हैं कि "ई नंगई बड़ी पावरफूल चीज होत हैं ससुरी। चटखारे ले-लेके खुबई देखत हैं लोग । वईसे हमाम मा हर केहू नंगा होत है, मगर जब नंगापन सीडी मा समा जात है तब ऊ राष्ट्रीय नंगापन होई जात है । फिर चाहे राजस्थान के पूर्व मंत्री मदेरणा हो चाहे बाबा नारायण दत्त या फिर अभिषेक मनु सिंधवी सब के हाल बेहाल होई जात है।" “सही कहत हौ चौबे जी, ऊ त भला हो अदालत का जो सिंधवी को नंगा होने से बचा लिया । बाकी सत्ता का डिटर्जेंट है न उनके पास धीरे-धीरे धुल जयिहें । न बचिहें दाग,न मचिहें कुहराम। वईसे अति विशिष्ट होत है दागदार नेताओं की पहचान । सफलता और प्रसिद्धि कs फार्मूला हs दामन पर बेतरतीब दाग। जे सफल नेता होत हैं ऊ हरकत अईसन करत हैं कि दाग लगे। दाग लगिहें तो प्रसिद्धि मिलिहें।“ बोला राम भरोसे। इतना सुनके रमजानी मियाँ ने अपनी लंबी दाढ़ी सहलाई और पान की गुलगुली दबाये कत्थई दांतों पर चुना मारते हुए कहा कि “दाग चड्डी में हो या सीडी में, एक ही बात हुई न मियाँ ....जब सार्वजनिक होने से बच गयी तो फिर काहे की चिंता ? सरकार अपनी है, दाग पर इतने दाग चढ़ जायेंगे कि मूल दाग अपने आप मिट जायेंगे । जनता की क्या, वो तो वही देखेगी न जो आप दिखाएँगे। इसी मौजू पर एक शेर फेंक रहा हूँ मियाँ लपक सकते हो तो लपक लो, अर्ज़ किया है कि खुद पर न इतना सितम ढाया करो, दाग अच्छे हैं डिटर्जेंट के पैसे बचाया करो ...!'' रमजानी मियां का शेर सुनकर उछल पडा गुलटेनवा। करतल ध्वनि करते हुए बोला "वाह-वाह रमजानी मियाँ वाह, का तुकबंदी मिलाये हो मियाँ ! एकदम्म सोलह आने सच बातें कही है तुमने। ई विषय पर अपने खुरपेंचिया जी भी कहते हैं कि राजनीति मा दागों का बुरापन कवनो मायने नाही रखत। उनके दाग पर इतने दाग चढ़ जात हैं कि मूल दाग अपने आप मिट जात हैं ससुर । हमरे समझ से दाग बुरे नाही होत, नजर बुरी होत है।" बोला गजोधर । लेओ रमजानी भईया के शेर पर एक सवा शेर हमरे तरफ से भी सुन लेयो। अर्ज़ किया है कि 'दाग नही तो पथराई है आँखें फीका-फीका सा चेहरा है,दागे सियासत है जिसके पास उसका भविष्य सुनहरा है' ....अछैबर बोले । इसका मतलब ई हुआ अछैबर कि सेक्स स्केंडल कवनो गुनाह नाही है ....पावर,पैसा,प्रशंसा और प्रसिद्धि की तरह हर एक नाजायज यार जरूरी होत है नेता लोगन खातिर। नाजायज यार नाही है तो अच्छे-अच्छों के गाल पिचक जात हैं,चौक-चौराहा पर ऊ तमाशा बन जात हैं। ज़रा सोचो दाल में काला होना गुनाह के संकेत मानल जात हैं, दाल पिली हो या काली दाल तो दाल हीं है न,जब कलमुंही पूरी की पूरी दाल हीं काली है तो गुनाह कैसा ? और जब गुनाह, गुनाह हीं नही है तो डर काहे का ? बोला गुलटेनवा। इतना सुनके तिरजुगिया की माई से ना रहल गईल, कहली कि -"वुद्धिभ्रष्ट हो गई है तुम सब की। जवन देश की दो तिहाई आवादी मंहगाई रूपी सुरसा के मुंह मा जबरन घुस के आत्महत्या करे पर उतारू हो, ऊ देश के नेता मौज मस्ती करै । जवन देश की आधी आवादी वेरोजगार हो उहाँ के नेता रोजगार और प्रमोशन का लालच देके नाजायज संबंध बनाए । लोकतंत्र का ऐसा बड़ा और मंहगा मजाक और का होई कि जवन धन से ई देश मा बिजली जले के चाही उहे धन से मौज मस्ती की लौ जलत हैं। इसके वाबजूद अगर यह कहा जाए कि राजनेताओं को जनता की चिंता है तो एसे बड़ा सफ़ेद झूठ और का हो सकत है ? खुद मौज मस्ती करे तो शौक और दूसरा करे तो वेश्यावृति ?" तिरजुगिया की माई की बतकही सुनके चौबे जी गंभीर हो गए और उन्होंने कहा कि "तोहरी बात मा दम है तिरजुगिया की माई, मगर कबीर का ज़माना बीत गया है अब।उस समय जनसेवकों की समस्या थी कि मैली चादर ओढ़कर कैसे जाया जाए? जाया ही नहीं बल्कि मुँह कैसे दिखाया जाए? बड़ी परेशानी थी दाग को लेकर। इसीलिए कबीर जैसे लोग जिंदगी भर एक ही चादर को ओढ़ा और बिना दाग लगाए जस की तस धर गये। बिता दिए पूरा जीवन फकीरी में । लेकिन आज का युग जनसेवकों का नही चतुर नायकों का युग है जिसमें कहीं जाना हो तो मैली चादर ओढ़कर जाने का रिवाज़ है । स्वच्छ चादर के खतरे अधिक हैं। मैली चादर को कोई खतरा नहीं। दाग भी लगने से पहले बीस बार सोचेगा, लगूँ कि ना लगूँ। इसलिए सत्ता चलाने वाले राजनेताओं पर तो विज्ञापन की यह पंच लाइन एकदम फिट है .....कि दाग अच्छे हैं...।। इतना कहके चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया । रवींद्र प्रभात

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