चौपाल में उत्तरप्रदेश के गरमागरम राजनितिक माहौल पर ब बिंदास बोलते हुए चौबे जी ने कहा कि " साईकिल की बदली चाल, कि ससुरै बाकी दल बेहाल, ओये तेरा क्या कहना.....। सिर पे टोपी लाल,हाथ में खादी का रुमाल, ओये तेरा क्या कहना ....।"
इतना कहकर चौबे जी सीरियस होई गए और कहा कि "ई जो पब्लिक है राम भरोसे,सब जानत हैं। सभके पहिचानत है। चाहे महामाया हो चाहे सोनिया चाची, आजतक केहू पब्लिक के वार से कबो बाचल जे अब बाची । नोएडा से लखनऊ तक बहिन जी खाके-खिलाके सोशल इंजीनियरिंग के हांथी-दांत वाला पाठ जनता के पढौली,सब धन बाईस पसेरी वाला हिसाब तोता नियन रटौली, मगर एन मौके पर सब गुड़ गोबर हो गईल। चुनाव आयोग मतदान खातिर महीना ग़लत चुन लिहलें। फागुन में वोट डाले से ससुरी सब गड़बड़ा गईल। भंग के तरंग में उडि गईल धज्जियां सोशल इंजीनियरिंग की और आ गईल प्रदेश मा अखिलेश का नया समाजवाद। नया चेहरा, नया तेवर वाला प्रदेश का नया सिपहसलार। बनी गए अखिलेश बबुआ जनता का नया ताड़नहार। हम्म बार-बार समझावत रहें कि बहिनी एतना मत खाओ, कुछ बचाओ प्रदेश खातिर....काहे कि जनता की लाठी मा आवाज़ नाही होत। यानी नेता बोलै बार-बार, जनता बोलै एकै बार। का गलत कहत हईं राम भरोसे ?"
"एकदम्म सही कहत हौ चौबे जी। ई ससुरी सत्ता मा गर्मी बहुत जादा होत हैं, इहे कारण है कि पार्टी चाहे जो हो, नेता की खुराक कम नाही होत। हम्म मानत हईं कि अन्य जानवरन से जादा खुराक हाथी के होत है,मगर जब खुराक से जादा पगालायेके खाए लागे हाथी, तो अईसन परिस्थिति मा जनता साईकिल पर चढ़के भागी ना तs का करी महाराज ? जहां तक पंजा के सवाल है कमबख्त शनीचर गली,फटीचर मुहल्ला,भोंपू चौराहा से लेकर संसद के रजवाड़े तक, जो भी मिला पंजे से उठाकर खादी मा डालते रहे । आजादी के बाद से आज तक बेचारी भूख से जार-जार जनता को रोटी की जगह मंहगाई की सुंघनी सुंघाते रहे । जुम्मा-जुम्मा आठ दिन का हाथी और कहाँ उनके चौंसठ साला अनुभवी हाथ। रही कमल के फूल की बात तो इस पर ना माया बैठ सकी, ना राम, मगर रामदेव जरूर बईठ गए लंगोट पहिन के । " बोला राम भरोसे।
इतना सुनके रमजानी मियाँ ने अपनी लंबी दाढ़ी सहलाई और पान की गुलगुली दबाये कत्थई दांतों पर चुना मारते हुए कहा कि "जब से यू.पी. का चुनाव परिणाम आया राहुल बाबा मुस्कुराना ही भूल गए। दलित के घर में खाना खाना, हुक्का पीना,किसानों के साथ खटिया पर बैठकर उनका दुख साझा करना कमबख्त सब भूल गए। हम्म तो यही कहेंगे कि बरखुरदार,क्या हाल बना रखा है, कुछ लेते क्यों नहीं ? आपने तो कम किया राष्ट्रीय युवराज जी, आपके कानून मंत्री ने क्या क्या नहीं किया जनता को रिझाने के लिए। कभी मुसलमानों को आरक्षण देने के लिए चुनाव आयोग से पंगे लिए तो कभी बाटला हाउस एनकांउटर के मामले में आपकी अम्मा को रुलाया। लेकिन जनता ठहरी बुद्धू। वोट देने की बारी आई तो भंग के तरंग में बह गई और बेचारे की प्यारी-प्यारी धर्मपत्नी जी को पाँचवें नंबर पर पटक दिया। घनघोर नाइंसाफी की है जनता ने उनके साथ। गब्बर सिंह के खौफ को भी पीछे छोड़ दिया यू.पी. की जनता ने। एक शेर अर्ज़ किया किया है मियाँ, मुलाहिजा फरमाईये -जनता को रिझाने में तोड़ दी मर्यादाएं सारी,इनसे तो वेश्याएं अच्छी जिनके कुछ उसूल होते हैं।"
"वाह-वाह रमजानी मियाँ वाह, का बतकही किए हो मियाँ ! एकदम्म सोलह आने सच बातें कही है तुमने। हमरे समझ से परंपरागत नेता जनता में डबल रोल करे वाला अभिनेता होत है। समय से ई बतिया भांप के यू. पी. जनता आपन नया युवराज बना लिहलें पांच साल खातिर अखिलेश के।" बोला गजोधर ।
इतना सुनके तिरजुगिया की माई कहली कि -"तोहरी बात मा दम्म है। मगर अखिलेश बबुआ खातिर भी आसान नाही है यू.पी. की डगर। बहिन जी जे गुड़-गोबर कईके गईली हs ओ के साफ़ करे के पडी उनके। जबतक व्यक्तिवाद के गोबर त्याग के समाजवाद के गुड़ ना खियईहें जनता के तबतक ई परिवर्तन के कोई मतलब नाही गजोधर ।"
तिरजुगिया की माई की बतकही सुनके चौबे जी गंभीर हो गए और इतना कहके चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया कि "समाजवाद बबुआ आई धीरे-धीरे। नया उत्तर प्रदेश बनावे में नई सरकार के साथ हमनियो के आपन भूमिका निभावे के पडी, तबे आई बबुआ समाजवाद।"
(डी. एन. ए./18 .03 .2011 )
0 comments:
Post a Comment