(डेली न्यूज एक्टिविस्ट में शुरू हुआ फिर से व्यंग्य का वहुचर्चित स्तंभ चौबे जी की चौपाल )
चौबे जी की चौपाल में होली की हुडदंग
आज चौपाल में जश्न का माहौल है। होरी का त्यौहार जो है। कहीं पुआ-पुड़ी की तो कहीं गुझिए की महक। कोई महुए के शुरूर में तो कोई ठंडई के गुरूर में। कोई गटक रहा ठर्रा तो कोई बुदका। कोई गा रहा, कोई बजा रहा, तो कोई लगा रहा ठुमका अलमस्ती की हद तक।
अपने दालान में साथियों के साथ पालथी मारकर बैठे चौबे जी के सिर पर फगुनाहट की आहट का अंदाजा साफ लगाया जा सकता है। रंग से सराबोर, कपड़े फटे हुए और आँखे मदहोशी में। सुबह से ही भाँग खाके भकुआए हैं चौबे जी , फगुनाहट सिर चढ़के बोल रही है। कह रहे हैं कि - "भैया-भौजी, बबुआ-बबुनी सभै के चौबे जी कै तरफ से होरी कै मुबारकबाद, होरी तो हर साल की तरा आई है, मुदा अबकी होरी कै बात कछु और है भाई । पहली बार चुनाव की वोटिंग के साथ होरी का बाजा बजा है ससुरा । कुछ भी कहो मगर अबकी होरी मा बडबोले दिग्गी का मन रीता-रीता है राम भरोसे। अब देख s माया मेम साब की मायाबी होरी मनत हैं अबकी या साईकिल पर सज-धज के पिचकारी लेके गली मा निकलत हैं छोटे सरकार । वालीवुड की हुस्नपरी अमर प्रेम मा पगलाए रहत हैं या छक के भंग वाली ठंडई पी-पीके गरियावत हैं अपने रामपुर वाले भईया अज़मवा के । एम.पी. वाली उमा अबकी होरी मा जरूर गयिहीं कि -यू.पी.वाला ठुमका लगाएँ, कईसे नाच के दिखाएँ ? आऊर तो अऊर फेसबुक,ट्विटर और ब्लागवा मा धंसि के होरी के रंग गुलाल खुबई फेकिहें सेलिब्रेटी लोग, काहे कि हाईटेक होरी कs मजा कछु और होत है राम भरोसे ।"
"एकदम्म सही कहत हौ महाराज कहीं माहौल तकरार का तो कहीं प्यार का...चुनावी काउंटिंग के साथ ठुमका मनुहार का, कालिख के साथ गुलाल का गठजोड़ है....अबकी होरी कै बात कछु और है....।" बोला राम भरोसे।
एकदम्म सही, मतलब सोलह आने सच कहत हौ भईया । उधर चुनाव आयोग आचार संहिता लागू कईके सख्त होई गए, इधर चतुर प्रत्याशी बीच का रास्ता खोजिके कुंभकर्णी नींद मा सोई गए । चुनाव आयोग की सख्ती का चुनावी सूरमा निकाल लिहलें तोड़। गाँव मा परधानन और रसूख वालन से ससुरी होई गए उनके गठजोर। का अवध का काशी,चुनावी खर्च के खपावे में अबकी खुबई भूमिका निभाए हैं हमरे डमी प्रत्याशी। अबकी चुनाव आयोग कै पेशेवर चुनाव मैनेजरन से निपटल होई गए टेढ़ी खीर,जबसे पैदा होई गए राजनीति मा पप्पू,गप्पू,रणछोड़,रणवीर । बताओ रामभरोसे, ई नक़कटवन के बीच नाकवालों के लिए नाक बचाना हलवा है का, नाही ना ? यानी कि अबकी भी जितिहें नक्कटवन प्रत्याशी अऊर मनयिहें अबकी छक के होरी, कहिहें जोगीरा सर..र...र...र...।" गुलटेनवा ने कहा।
अचानक खुरपेंचिया जी को देखकर स्तब्ध हो गया चौपाल। खुरपेंचिया जी दोउ कर जोरे, दांत निपोरे, मचरे मचर करै जूता उतारी के बईठ गए चौपाल में और पान की गिल्लौरी मुंह मा दबाये बोलै "जय राम जी की चौबे जी, आज हमहू आ गए तोहरे चौपाल मा होरी की शुभकामनाएं देने ....!"
"बहुत अच्छा किये नेता जी, मगर यहाँ तो आदमी की चौपाल लगी है ?"
"काहे हम आदमी नाही है का ?"
"नाही आप तो नेता जी हैं ".......चुटकी लेते हुए बोला बटेसर
नेता जी खीश निपोर कर बोले "काहे नेता आदमी नहीं होत है का ?"
"हमारे समझ से तो नहीं होत" मुस्कुराते हुए बोला बटेसर .....!
पूरा चौपाल सन्नाटे में चला गया, चौबे जी ने पूछा "ई का कह रहे हो बटेसर, नेता आदमी नहीं होत है , ऊ कईसे ?"
"अरे हम का बतायीं महाराज, साल भर पहिले इहे होरी में जईसे हीं ठंडई हलक के नीचे गईल, वईसे हीं हमको भी नेता बनने की इच्छा सवार हुई । जब हम ई बात बताएं अपनी धर्मपत्नी जी से कि -भाग्यवान हम भी नेता बनकर दिखाएँगे"
हमरी धर्मपत्नी ने हमसे कहा - " कि पहिले हम १५ दिनों तक लतियायेंगे "
"उसके बाद अगले १५ दिनों तक हम गंदी हवाओं की चाशनी पिलायेंगे, हवा और लात खाकर भी जब तुम मुस्कुराओगे, उसी दिन आदमी से नेता बन जाओगे !"
हम्म समझे नाही, मतलब तो समझाईये बटेसर भईया ?
ऊ बात ई है कि "आदमी लात खाए के डर से गलत बातों को हवा नहीं देता , किन्तु नेता का हवा लात से गहरा रिश्ता होता है ....!"
का गलत कहते हैं नेता जी ?
न...न.....न....न....!
तभी टोका-टोकी के बीच पान की पीक पिच्च से मारते हुए गुलटेनवा ने इशारा किया- "अरे छोडो बटेसर, आओ ज़रा रंग में भंग हो जाए , फिर का नेता और का आदमी सबके सब एक साथ मिलके गायें जोगीरा सरऽ रऽ रऽ......।"
"हाँ, काहे नाहीं गुलटेन....... मगर पहिले ठंडई फेर जोगीरा...।" इतना कहकर चौबे जी ने आवाज़ दी ! चौबे जी की आवाज सुनकर पंडिताईन बटलोही में भरकर दे गयी है ठंडई और लोटा में पानी, ई कहते हुए कि - "जेतना पचे ओतने पीअ ऽऽ लोगन, होरी में बखेरा करे के कवनो जरूरत नाहीं।"
"ठीक बा पंडिताईन ! जइसन तोहार हुकुम, लेकिन नाराज मत होअ आज के दिन।" दाँत निपोर कर बोलते चौबे जी के कत्थई दाँतों की मोटी मुस्कान और बेतरतीब मूछों कि थिरकन देख पंडिताईन साड़ी के पल्लु को मुँह में दबाये घूँघट की ओट से मुसकाके देहरी के भीतर भागी।
तभी रमजानी मियाँ ने ठंडई गटकते हुए पान का बीड़ा मुह मा दबाया और फरमाया कि "अमा यार, इस बार अन्ना की पिचकारी मा रंग नाही दिखाई देत हैं। सभै रंग निचोड़ ली ससुरी अन्ना की टीम।"
"सही कहत हौ रमजानी मिया। बुढऊ मुद्दे गलत उठाये लिया। जवन देश के रग-रग मा बहत हैं भ्रष्टाचार अऊर रिश्वत के रंग। ऊ देश मा का मिलावट,का बनावट, का बुनावट, का दिखावट, सभै एक जईसन । जानत हौ रमजानी भईया । काल्ह एगो महिला कलर्क द्वारा रिश्वत लेवे के शिकायत लेके मंगरुआ जब पहुँचा अफसर के पास तो अफसर बोला कि आप व्यर्थ किसी की कार्य क्षमता पर आरोप न लगाएं । रिश्वत में आपने दिया का है ये बताएं? जानत हौ भईया मंगरुआ आव देखा न ताव अफसर से कहा कि जाईये जाके पूछिये अपने महिला कर्मचारी से कि चोली के पीछे का है ? चुनरी के पीछे का है ? आपको दूध का दूध पानी का पानी मिल जावेगा, का समझे ? सुनी के झेंप गए महाराज अऊर खिश निपोरते हुए बोले चुप करो मंगरुआ जी होरी मा लेन-देन को रिश्वत नाही व्यवहार कहा जाता है। हा...हा...हा...हा...हा...।" बोला गजोधर।
इतना सुनि के पान की पिक पिच्च से फैंक के कथ्थई दांत निपोरते हुए रमजानी ने कहा कि "बरखुरदार, नायाब है इस बार की होरी, लंगोट पहनके खेलेंगे फाग हमरे नेता लोग....युवराज लिखेंगे जोग और चुपके से दिग्गी चट कर जायेंगे राजभोग। घोटालों की पिचकारी से रंग बरसाएंगे चिदंबरम और धमकी भरी गुजिया खिलाएंगे कपिल सिब्बल। सोनिया चाची विदेश से सन्देश भेजेंगी कि लल्ला, अगले बरस अईयो खेलन होरी और राजा-कलमाडी तिहाड़ के गेट पर बईठके चिलायेंगे कि लईयो मत राजा कालिख से भरी-भरी झोरी।“
एक शॉर्ट ब्रेक के बाद रमजानी मियाँ ने फिर पान का बीड़ा मुंह में दबाया और फरमाया कि "बरखुरदार, जे साल साल भर चर्चा के केंद्र बने रहे..मीडिया में जिनके कारनामे हर ओर तने रहे..जिनको देश-विदेश में मिली शेष-विशेष-अशेष पहचान.....जिनके हिस्से में आया मान, सम्मान, अभिनन्दन या अपमान.....जिनको लेकर जनता ने की बतकही और पत्रकारों ने चमकाए हरी, लाल, नीली स्याही के पेन.....इसबार सबकी मानेगी हचक के होली....हर कोई करेगा गरमागरम ठिठोली । सबकी सरकेगी चुन्नी.......शीला हो या मुन्नी । इसबार उललाला बाला विद्या बालन के प्यार में रहेगा हर कोई मतवाला । मगर अफ़सोस बुढऊ मनमोहन की इसबार फीकी रहेगी मनमोहनी मुस्कान, काहे कि विपक्षी सुषमा तो रंग डारेगी नहीं और सोनिया चाची विदेश में ही करेंगी अबकी गंगा नहान । इधर यू.पी. में चुनाव परिणाम के बाद न नौ मन तेल होगा न हथनी नाचेगी और आज़म से खार खायी जया भाभी अमर प्रेम की पाती बाँचेगी । अखिलेश पहली बार साईकिल की रफ़्तार बढाई के झूमेंगे- गायेंगे और उधर युवराज दिल्ली में बैठकर मन ही मन मुस्कायेंगे । कुछ भी कहो भईया इस बार की होली, किसी को जीत का गुजिया खिलाएगी तो किसी को जार-जार रुलाएगी । एक शेर अर्ज़ है, मुलाहिजा फरमाईये, अर्ज़ किया है कि - कहीं लगेगी नोट की बोली,कहीं विधायक टूटेंगे ....गठ्वंधन की बात चलेगी, ऊँची बोली बोलेंगे ...ऐसी होली लिप ईअर की जाने फिर कब आएगी....नेता करेंगे गठ्वंधन और हम अपने बालों को नोचेंगे ।"
"वैसे यू.पी. मा अबकी कs होरी होरी नाही खुला खेल फरुखावादी होई बबुआ। जे सत्तापक्ष में होयिहें ऊ सांप अऊर जे विपक्ष में जयिहें ऊ नेवला बनिके एक-दोसरा के साथ सांठ-गाँठ वाली होरी खेलिहें और जे चमचा होयिहें ऊ आगामी विधान सभा खातिर भ्रष्टाचार के ताना वाना बुनिहें। और तो और जे शशांक शेखर जईसन करेला छाप अधिकारी होयिहें ऊ बगैर रस्सी के नीम टाईप नेता के चारो तरफ घूम-घूम के सत्ता के फुनगी तक पहुँच जयिहें ।" हंसमुख भाई ने कहा ।
"बाह-बाह-बाह क्या बात है हंसमुख, अब हम्म समझें कि अन्य शहरों की अपेक्षा हमरे राजधानी मा प्रदुषण काहे जादा है ?" बोली तिरजुगिया की माई
" हमहूँ के बताओ चाची कि राजधानी मा काहे जादा है प्रदुषण ?" पूछा गुल्टेनवा ।
" अरे इतना भी तोके समझ मा नाही आवत कि जहां नेता जादा होत हैं वहां प्रदुषण जादा होत हैं यानी कि अपनी राजधानी दिल्ली।"बोली तिरजुगिया की माई ।
इतना सुनि के चौबे जी से नहीं रहा गया, बोले कि " लखनऊ दिल्ली से कम है का ? चावल मा कंकर की मिलावट , लाल मिर्च मा ईंट - गारे का चूरन,दूध मा यूरिया , खोया मा सिंथेटिक सामग्रियाँ , तरकारी मा विषैले रसायन की मिलावट और तो और देशी घी मा चर्वी, मानव खोपडी, हड्डियों की मिलावट ई सब किस्तन मा आत्महत्या करे खातिर कम है का ? ......बताओ तो तिरजुगिया की माई , का मुल्ला का पंडित ....ई मिलावट से सब मांसाहारी होई गए, अपने देश मा केहू शाकाहारी नाही बचा, यानी कि मिलावट खोर ससुरे समाजवाद लायी दिए हमरे देश मा। हम्म त ईहे कहब कि होरी मा मिलावट से बचि के रहियो....नेता लोग दरवाज़े पर आएं तो उनके मिलावट वाली गुजिया खिलाये दियों मगर खुद मत खायियो भईया।"
थोड़ा सा सांस लेकर फिर बोले चौबे जी कि "खैर छोडो, आओ मिलके फाग गाते हैं हम सब।“
सब मिलके फाग गाते हैं -
"आर...र...र...र
जोगीरा सर...र...र...र ...
पियवा लागे बासी पुआ, कुवंर पकौड़ी छन-छन.....
लागे भौजी ताज़ा महुआ औ दहीबड़ा सी पड़ोसन ...
मन से बौराई है गोरी, तन से अकुलाई है ....
कसमस-कसमस करती ससुरी होली आई है ।
आर...र...र...र
जोगीरा सर...र...र...र ...।
बुढऊ बने हैं अधरंगी, मांगे चोखा-चटनी...
देख-देख के बुढिया रीझै,दिखाए झाड़ू-बढ़नी....
रसे-रसे महुआ के जईसन बहुरि छाई है....
कसमस-कसमस करती ससुरी होली आई है ।
आर...र...र...र
जोगीरा सर...र...र...र ...।
रंग चंपई माया की, रीता है भकुआई....
मुलायम घोटे भंग उधर देख उमा शरमाई...
बड़े दिनों के बाद चुनावी रंग दिखाई है
कसमस-कसमस करती ससुरी होली आई है ।
आर...र...र...र
जोगीरा सर...र...र...र ...।“
इसके बाद चौबे जी ने चौपाल अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया।