"आज चौबे जी कुछ ज्यादा उदास हैं  बटेसरका बात है रे ?" 

"का बताये भैया सुबहे से खोये खोये से हैं।"

"ठीक है चलो  चौपाल  में ही पूछ लेत हैं उनके  उदासी का कारण ...हाँ हाँ चलो राम  भरोसे" ...... बोला अछैबर  

आज मडई के बाहर  बैठिके में चौपाल लगाए हैं चौबे जीअछैबर के उकसाने पर आखिर चुप्पी तोड़ी के बोले " का बताएं  जब सारी दुनिया इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर मशीनी ज़िंदगी जीने को मज़बूर है तो अन्ना को सतयुग का हरिश्चन्द्र बने रहने की का ज़रूरत ज़माना बदल गया है । हर चीज मशीनी हो गयी है यहाँ तक कि भावनाएं भी ।  भावनाओं की कब्र पर उग आये हैं घास छल- प्रपंच और बईमानी के। ऎसी स्थिति में  बार-बार अनशन की बात करेंगे तो उनको लोग छुटभैया ही समझेंगे नऔर का समझेंगे ?"

"छुटभैया का मतलब का होत है चौबे जी ?" तपाक से पूछा गुलटेनवा 
छुटभैया का मतलब होत है छुटका भैया यानी साधारण हैसियत का आदमी । बोले चौबे जी  

"हाँ अब समझ मा आया इस मंदबुद्धि को कि जब भारत के संसद भवन मा अपाहिज खेलत हैं खेलगूंगे कॉमेंट्री करत हैं,अंधे तमाशबीन होत हैं और संसदीय समिति में होत है हिजडों की टोलीअईसे में  भईया हमरी- तोरी  सच्चाई वैसहीं  जैसे चांदी की थाली में गोबर । अईसे में भईया अन्ना को भी देर-सवेर समझ में आ हीं जाएगा कि  देश आंदोलन से नहींरौब से चलता है। मगर अन्ना का दिल है कि मानता नहीं,कहते हैं अनशन करूंगा तो करूंगा ।" बोला गुलटेनवा 

इतना सुनकर अपने कथ्थई दांतों में चुना मारते हुए रमजानी मियाँ ने फरमाया,कि "बरखुरदार इस देश में है एक नायाब सरदारजिसके खाते तो हैं मगर गाते नहीं ससुरे सिपहसलार  बेचारा सरदार कहता है कि हमारा साथी गबन नहीं लोकतंत्र का हवन कर रहा हैं और विपक्ष शोर मचाकर अपनी मर्यादा का केवल निर्वहन कर रहा है । रही अन्ना की बाततो मियाँ अभी जनलोकपाल से तलाक लेने के मूड में नहीं है अन्ना,क्योंकि सरकारी बहुरिया अपने विदेशी लबों को खोलती नहींकुछ बोलती नहीं मगर फाड़ती जा रही है दनादन जन लोकपाल का पन्ना और नमक का मरहम लगाकर पूछती है क्या हुआ अन्ना खैर छोडो इसी मौजू पर एक शेर फेंक रहा हूँ,लपक सकते हो तो लपक लेयो मियाँ । अर्ज़ किया है कि कभी कश्ती,कभी बतख,कभी जल...सियासत के कई चोले हो गए हैं ।"

इतना सुनकर तिरजुगिया की माई चिल्लाई, "एकदम्म सही कहत हौ रमजानी । मगर सवाल ये है मियाँ कि अगर सचमुच अईसा है तो एके रोकिहें के तूहम्म या नेता लोग ?"

"अईसन हचाची कि ऊ ज़माना गईल जब लोकतंत्र की नीब जनता-जनार्दन होत रही । जनता के वोट से राज पलटत रहे । जनता के वोट से ही ताज मिलत रहे नेता लोगन के । अब तवहुमत मिले चाहे ना मिले,राज मिलके कर लिहें भाई लोग  ईहे कारण है कि देश के रोम-रोम कर्ज में डूब गईल और धरती के दस सबसे बड़े कर्जखोर देशों में शामिल हो गईल हमार देश । हर साल राजस्व की कमाई का दो तिहाई हिस्सा ससुरी कर्ज चुकाने और ब्याज भरे में ख़त्म होई जात हैं । जे बचत हैं ससुरी मंहगाई दायाँ खाए जात है । एकर खामियाजा के भोगत हैं चाची,सरकार या जनता ?" भारी मन से पूछा गजोधर। 

"हमरे समझ से जनता भोगत हैं खामियाजा और नेता खात हैं मनेर के खाजा।" बोली तिरजुगिया की माई 

"एकदम्म सही चाचीहर साल दस हजार से ज्यादा लोग भूख से दम तोड़ देत हैं,फिर भी हम गर्व से कहत हईं कि भारतीय हैं । देश भर में छ: करोड़ से ज्यादा लोग भीख मांगत हैं। देश की चालीस प्रतिशत जनता अंगूठा छाप हैं। उन्नीस करोड़ से ज्यादा लईकन स्कूल के मुंह नाही देखत। अठ्ठारह करोड़ से ज्यादा बेरोजगारों की फौज रोड पर धक्के खात हैं। बिना सिफारिश और घूस के नौकरी नाही मिलत। राजनीति मा अपराधियों का बोलबाला है और अपराध की कमान संभालत हैं हमरे नेता लोग। हर साल सरकारी दफ्तर मा बीस हजार करोड़ से ज्यादा घूस ली जाती है। हर साल पचास हजार से ज्यादा लोगन की ह्त्या होई जात है। हर साल सत्तर हजार से ज्यादा औरतन की इज्जत लूटी जात है। चालीस हजार से ज्यादा औरत दहेज़ की बलि चढ़ जात हैं,फिर भी हम गर्व से कहत हईं कि भारतीय हैं । अईसे में कईसन गर्व चाची ?" बोला राम भरोसे 

"बाह-बाह क्या बात है राम भरोसे,तुम्हारी बतकही पर एक शेर अर्ज़ कर रहा हूँ कि जो आदमी मर चुके थेमौजूद है इस सभा में....हर एक सच कल्पना से आगे निकलने लगा है ।" रमजानी मियाँ ने कहा 

चौपाल की बतकही से चौबे जी सीरियस हो गए और बोले कि अन्ना को समझना चाहिए कि यह सतयुग नाही है भईया कलयुग है कलियुग और कलियुग मा सच बोलना पाप है पाप। ज़रा सोचो ,ज़रा समझो । दुनिया को जानो,लोगों को पहचानो। तुम्हारे अनशन से राजनीति सुधरेगीइस भ्रम में न रहो और हो सके तो आगे से जन लोकपाल लाने की बात न कहोक्योंकि नक्कटों के बीच नाक वालों की क्या हैसियत इसी के साथ आज की चौपाल स्थगित करने की घोषणा की चौबे जी ने यह कहते हुए कि सच का मुह कालाझूठ का बोलबाला !

रवीन्द्र प्रभात 

0 comments:

Post a Comment

 
Top