उत्तरप्रदेश के गरमागरम चुनावी माहौल पर चुटकी लेते हुए चौबे जी ने चौपाल में कहा कि "चहूँ ओर चुनाव के ढोल बजने लगे हैं। जंग के मैदान सजने लगे हैं। झंडे-बैनर बनने लगे हैं। मंगरुआ के साथ-साथ ढोरयीं के भी सुर बदलने लगे हैं । बड़े मियाँ के साथ-साथ छोटे मियाँ भी देखने लगे हैं सत्ता के ख़्वाब। अपना के बढ़िया और दोसरा के कह रहे हैं खराब। चतुरी,फतुरी, पोंगा पंडित से लेकर मुन्ना फकीर, सब के सब उत्तरप्रदेश को समझने लगे हैं आपन जागीर। केहू सांठगाँठ पर मटकने लगा है तs केहू टिकट खातिर खुरपेंचिया जी जईसन नेतवन के द्वारे-द्वारे भटकने लगा है। टिकट ना मिलाने की सूरत मा कहीं केहू भड़कने लगा है,केहू बिदकने लगा है,केहू अंगूर खट्टा कहके खिसकने लगा है, तs केहू दोसरा की थाली मा खीर देखके लपकने लगा है । सब के सब मजबूत पार्टी मा एंट्री खातिर हर तरिका अख्तियार करने लगे हैं। जरूरत पड़ने पर गदहों को बाप कहने लगे हैं। सच कहूं तो राम भरोसे, सारे के सारे सियार रंगे हैं, क्योंकि हमाम में सब के सब नंगे हैं।"
इतना कहकर चौबे जी सीरियस हो गए और कहा कि " ई सब तो ठीक है मगर राहुल ने ई का कह दिया रामभरोसे, कि केंद्र का पईसा लखनऊ में बईठा हाथी खा जाता है ? उनके एतना भी नाही मालूम का कि ससुरी योजनायें बनती हीं हैं खाने के लिए। काहे कि योजना होत हैं अनार, जेकर सौ वीमार होत हैं । अब ई बताओ भईया,कि जब प्रदेश के नेता हाथी है, शासक हाथी है, सरकारी मशीनरी हाथी है, तो खुराक भी हाथी वाली ही होगी नs ?"
"एकदम्म सही कहत हौ चौबे जी। पईसा मा गर्मी बहुत जादा होत हैं, इहे कारण है कि ससुरी पार्टी चाहे जो हो, नेता की खुराक बस नोट ही होत है और कुछ नाही। जहां तक पंजा का सवाल है कमबख्त शनीचर गली,फटीचर मुहल्ला,भोंपू चौराहा से लेकर संसद के रजवाड़े तक, जो भी मिला पंजे से उठाकर खादी मा डालते रहे ।आजादी के बाद से आज तक बेचारी भूख से जार-जार जनता को रोटी की जगह मंहगाई की सुंघनी सुंघाते रहे । जुम्मा-जुम्मा आठ दिन का हाथी और कहाँ उनके चौंसठ साला अनुभवी हाथ। रही कमल के फूल की बात तो इस पर ना माया बैठ सकी, ना राम, मगर रामदेव जरूर बईठ गए लंगोट पहिन के । बाक़ियों का क्या है, उनका तो काम ही है भौकते रहना। प्रदेश अपनी चाल बदल दे क्या ?" बोला राम भरोसे।
इतना सुनके रमजानी मियाँ ने अपनी लंबी दाढ़ी सहलाई और पान की गुलगुली दबाये कत्थई दांतों पर चुना मारते हुए कहा कि "बरखुरदार, पईसा खुदा नही है मगर खुदा से कम नही है। हम्म तो बस इतना जानते हैं कि सच्चा नेता वही होता है जो नोट से कुल्ला करता है । नोट की गिल्लौरी बनाके पान के बदले मुंह मा दबा लेता हैं। भैंस की तरह पांच साल तक पगुराता-पगुराता कुछ थूक गटक लेता हैं और कुछ श्रद्धालू जनता-जनार्दन पर चुनाव के बखत थूक देता हैं, उनकी सहृदय संवेदनशीलता और ग्रहणशीलता को अपना निजी पीकदान समझ के। हमरे इन महान और जनप्रिय नेता लोगन खातिर सत्ता की सवारी का मतलब है नोट फॉर वोट, ताकि पहनने का मौक़ा मिलता रहे बार-बार लोकतंत्र में विश्वास रुपी कोट। किसी शायर ने कहा है कि खुदा नही,न सही,आदमी का ख़्वाब सही,कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिए ।"
वाह-वाह रमजानी मियाँ वाह, का बतकही किए हो मियाँ ! एकदम्म सोलह आने सच बातें कही है तुमने। काहे कि जनता बना है 'व्यक्ति' से आऊर नेता 'समाज' से। जनता के पास पईसा होए के मतलब देश मा 'व्यक्तिवाद' आऊर नेता के पास पईसा का मतलब होत है देश मा 'समाजवाद'। 'व्यक्तिवाद' गोबर है, 'समाजवाद' गुड़। अगर हमरे नेता 'व्यक्तिवाद' का गोबर त्याग के 'समाजवाद' के गुड़ ना खईहें तs देश के गुड़-गोबर होए से कईसे बचईहें ?" कहलें गजोधर ।
इतना सुनके तिरजुगिया की माई से ना रहल गईल,कहली कि -"भईया तू लोग ज्ञानी हौअs और हम्म हईं जाहिल गंवार,मगर इतना जरूर कहब कि इसबार चुनाव मा दूध का दूध और पानी का पानी जरूर होई। कॉंग्रेसी लोगन से निवेदन बा कि क्रेन के व्यवस्था कs लिहs लोगन, हाथी से हजार हाथ दूर रहियहs। देखियह कहीं फेर केहू पंजा से पंजा लडावे में गाल पर थप्पड़ ना जड़ दे। बी.जे.पी. के नेता लोगन के हमार इहे सुझाव बा कि ब्रह्म से माया की मिलाबट ना होने पाए, नही तो न आम मिलेगा ना गुठली कs दाम। बी.एस.पी. के नेता लोगन से निवेदन हs कि दांत निपोरल कम कर दs लोगन,जहां लायिनिये नईखे,ओईजा दांत निपोरल के देखी।समाजवादी पार्टी के नेता लोगन से इहे निवेदन हs कि खिसिया के खंबा मत नोचs लोगन। खिसिया के खंबा नोचले से का हासिल होई ? अईसन कुछ काम करs कि रियल गुड फिल हो जाए । बाकी पार्टी के लोगन से का कहीं ? मगर इतना जरूर कहब कि हर कुकुर के दिन बहुरेला,धैर्य बनाए रखs।"
"तोहरी बात मा दम्म है चाची,मगर ई बात की गारंटी कवन लेगा कि बिना बुलेट के बैलेट पडिहें।"बोला गुलटेनवा।
गुलटेनवा की बतकही सुनके चौबे जी गंभीर हो गए और इतना कहके चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया कि "कहीं सरकारी मशीनरी खराब,कहीं सुरक्षा प्रबंध खराब,कहीं वोटिंग मशीन खराब,कहीं माहौल खराब,कहीं प्रत्याशी खराब-इस खराबी के दौर में अच्छाई की गूँज होगी भी तो कैसे ? जनता की पसंद की सरकार बनेगी इस पर विश्वास हो भी तो कैसे? खैर हम्म तो आशावादी हैं गुलटेन, अभी चुनाव मा कई महीने हैं, चलो मिलकर दुआ करते हैं कि सिस्टम सही हो जाए।"
रवीन्द्र प्रभात
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