आज अपने चौपाल में चौबे जी  नंगे बदन लुंगी लपेटे बैठे हैं । प्लेट में चाय उड़ेल कर सुड़प रहे हैं । तोंद कसाब  मामले  की  तरह आगे निकली हुई है । सफाचट सर, मूंछ  में चाय की बूँदें अटकी हुई मनमोहनी मुस्कान बिखरते हुए  मुँह ही मुँह बुदबुदा रहे हैं  - " इधर राजा ने बजा दिया बाजा और उधर लंगोट कस के फाग  खेलनेकी तैयारी में है रामदेव ...!  गुलटेनवा से रहा नहीं गया, बोला बाबा !

कतरी हुई सुपारी के दो लच्छे मुँह में झोंक कर बोले -चुप कर ससुर, बाबा मत कह , ई बाबागिरी के नाम से हमको उबकाई आती है, अब देखो क़ल अख्तरवा की दस साल की बच्ची ने टी वी पर  जब बाबा को   देखा और सवाल किया "पापा यह बाबा रामदेव कौन है ?  अख्तरवा ने  कहा के ऊ  एकसरसाइज़ से लोगों  का इलाज करते हैं...... बच्ची ने कहा कि मेरी फ्रेंड के पापा तो कह रहे थे ये दवा भी बेचते हैं ..... बच्ची का  दूसरा  सवाल था के "पापा बाबा रामदेव जब दवा बेचते हैं तो फिर एकसरसाइज़ क्यूँ करवाते हैं  और जब यह दोनों काम करते हैं  तो फिर नेतागिरी की बात टीवी पर क्यूँ करते हैं ?
है कोई जबाब तोहरे पास, बता .....!

नहीं है न कोई जबाब ?

अख्तरवा ने जब मुझसे पूछा था, तो हम भी जबाब नहीं दे पाए थे ....इतना सुनते ही राम भरोसे उठ खडा हुआ और भीगी हुई सुपारी की तरह मुरझाकर बोला-

 बाबा रामदेव देश के भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने की बात करते हैं लेकिन खुद उनके पास कितनी सम्पत्ति ,कितनी दवा फेक्ट्रियां ,कितनी भूमि,कितने वाहन ,कितने रूपये हैं  उनका रुपया कहां से आता है और कहां जाता है  ,.....कोई बताएगा ?

तभी चुटकी लेते हुए चौबे जी  ने कहा, हमारे पास है जबाब !
चौंक गए सब, बोले बताईये महाराज-
" चौबे जी ने कहा पहिले सब कोई ५०-५० के हरिहर नोट दक्षिणा में निकालो फिर बताएँगे, बाबा चरित्रं मुफ्त में थोड़े न सुनायेंगे !"

सब ने ५०-५० के नोट निकाले, और चौबे जी को थमाया, कड़े-कड़े नोट देख चौबे जी का मन ललचाया और बाबा  बनने के नुस्खे उसने कुछ इसकदर फरमाया !"
भावना में मत बहो, जो भी कहो सच न कहो, ईश्वर का खौफ दिखाकर लूटो, क्योंकि हर लूटने वाला या तो अपराधी होता है या बाबा.....जिस दिन बाबा बन के दिखाओगे, सब जान जाओगे !"
बाकी क़ल बताएँगे जब आप लोग दक्षिणा में फिर कुछ लेकर आयेंगे !
महाराज ये तो ठगी है ....!

नहीं बच्चा यही तो बाबा की जादूई छडी है !

इतना कहकर चौबे जी ने चौपाल को अगली तिथि तक के लिए स्थगित कर दिया !
() रवीन्द्र प्रभात

0 comments:

Post a Comment

 
Top