आज चौपाल में चुहुल कम है, चौबे जी जो नही है......... राम भरोसे का कहना है कि चौबे जी गए हैं दिल्ली छब्बे बनने, पगला गए हैं आजकल, कह रहे थे कि आस्कर की तरह उहाँ पर भी आ रहे हैं देश-विदेश के ब्लॉगर अऊर त s अऊर ६४ जने के पुरस्कार-वुरस्कार भी बाटेंगे ...!
यानी लंगोटी पहिन के फाग खेलेंगे चौबे जी महाराज ? चुटकी लेते हुए बोला गुलटेनवा
अरे का बताएं गुलटेन, बड़ा मारामारी है ससुर ई पढ़ल-लिखल आदमी के जमात में, नया-नया फैशन शुरू हुआ है ब्लॉगिंग का, पुरस्कार अब पुरस्कार नाही रहा बन गया है अल्लाह मियाँ का जूता, हर कोई चूमने को बेताब है आजकल .........बोला राम भरोसे .
इतना सुनते ही रमजानी ने कहा भैया राम भरोसे, समझा नहीं कि ई पुरस्कार से अल्लाह मियाँ का का ताल्लुक है भइया ?
बात ई है कि एक दिन बीरबल बोले अकबर से जहाँपनाह हम आपको अल्लाह मियाँ से मिलवायेंगे. अकबर फूली के कुप्पा. लगे अगोरने -कब दिन आयेगा . छटपिटाके छूछ्माछार हो रहे थे कि एक दिन बीरबल इकठे मोची से एक गोड़े का नया जूता लिए -बोले दुई-चार दिन में लौटा देंगे. मोचियों सोचा कि ठीक है गाहक आयेगा तो मांग लायेंगे . ओहर बीरबल राती में खायपी के कायदे से मनई लेखा घर में सोये . जूतबा बिस्तरे के पास रख लिए . सबेरबई उठि के घर में सीकड़-धड से दरबाजा बंद कर लिए अऊर घरबा में भोंकरिके रोने लगे . घर वाले दरबाजा खोलने को कहते तो अऊर जोर से रोने लगते . बहुत समय बीत गया था ओहर जब अकबर के दरबार लगा तो बीरबल गायब. खोजहरिया हुई तो असली खिस्सा पता लगा . बादशाहों गए , दरबाजा खोलबाने लगे . कईसो-कईसो जब दरबाजा खुला तो बादशाह देखे कि बीरबल एक गोड़े का जूता छाती से लगा के रो रहे हैं . बादशाह ने जब इस बाबत पूछा तो नाक सुनकते बीरबल बोले -रात अल्ला मियाँ आये थे . हमने कहा बादशाह सलामत को दर्शन दे दीजिये तो तडाके भागने लगे . हमहूँ कस के गोड़ छान लिए . ऊ तडाके भागे. ओही में एक गोड़ का जूता हमरे हाथ में रह गया . अकबर ने सबके सामने अल्लाह मियाँ का जूता हाथ में लिया , चूमे ,माथे लगाए .बीरबल ने रंग चढाते देख कहा हूजूर दरवार में रखकर डुगडुगी पिटवा दीजिये लोग माथे लगा ले . पूरी जनता बारी-बारी आती गयी जूता उठाकर माथे पर लगाना ,गाल पर खुदै मारना, चूमना चाटना चलता रहा. दुई दिन बीत गया कवनो गाहक जब मोची के यहाँ आया तो ऊ भागता हुआ दरबार में दाखिल हुआ . बीरबल से बात की . बीरबल ने सिंहासन से जूता देने में हिला हबाली करने लगे .काफी हुज्जत के बाद बादशाह के हस्तक्षेप करने पर बीरबल ने सच्ची कथा बता दी और बादशाह से यह भी कहा कि -हूजुर अल्ला मियाँ उसी को मिलते हैं जो उनकी नज़रों में लायक होता है यानी पुरस्कार भी उसी को मिलता है जो पात्रता रखता है, अगर अईसा नहीं होता तो श्रीलंका के क्रिकेटर धोनी से कपवा छीन नहीं लेते ? का गलत कहत हईं गजोधर ?
अरे राम भरोसे भैया, तू अऊर गलत कबो नाही हो सकत है, हम्म त s बस एतना जानत हई कि पुरस्कार मतलब होता है पुरुषों की कार,जिसपर सब होना चाहते हैं सवार.....काम करें या न करें पर पुरस्कार लेने का सबका हक बनता है....सब यही सोचते हैं,पुरस्कार के तौर पर भारी धन राशि की इच्छा भी पालते हैं,जबकि आजकल पैसे लेकर सम्मानित किया जाता है .उस पर तुर्रा यह कि सम्मानित जन आने जाने ठहरने का किराये से लेकर पानी बीड़ी तंबाकू तक के खर्च की उम्मीद रखते हैं,सम्मानित करने वाला चाहिए अपमानित हो जाए पर उनका प्रत्येक कण सम्मानित होना चाहिये
विधा नई हो या पुरानी उससे कोई अंतर नहीं पड़ता है भईया, सबको चाहिए पुरस्कार रुपी मईया. साहित्य की बराबर या उससे आगे जाने की होड़ इतनी अधिक है कि सम्मान पाने के लिए सभी शर्तें मानने वाले भी मौजूद हैं सब जगह हिन्दी ब्लॉगिंग क्या बला है ? बोला गजोधर
ई ब्लॉगिंग का होता है गजोधर ?
अरे नाही जानत हौ, इंटरनेट की सबसे ताक़तबर विधा है ई, सुना है इस बला से सरकार डरती है,अन्ना हजारे को भी इसी से ताकत मिली
उसी ताकत की वजह से उन्हें इतना प्रचार मिला,मगर भईया इसमें भी घुस गयी है राजनीति आपसी जोड़ तोड़ इसका नुकसान कर रही है,मगर संतोष तो इस बात का है बरखुरदार कि इस विधा ने नए नए कीर्तिमान स्थापित करने शुरू कर दिए हैं, अऊर तो अऊर जनाना लोग खुबई खुल के लिख रही है अऊर महिला सशक्तिकरण को अऊर सशक्त कर रही है....जब लौटके आयेंगे चौबे जी तो सोच रहे हैं कि ब्लॉगरों के लिए एक प्रस्ताव पारित करवाया जाए कि सब कुछ करो बाकिर खींच-तान नाही करो, काहे कि इस सबसे हमको घिन्न होती है भईया .....! अपनी दाढ़ी सहलाते हुए बोला रमजानी
तोहरी बातों में दम है रमजानी चाचा , हमने भी सुना है कि ई विधा बहुत ही चमत्कारी है । नेक मन को इंसान से जोड़ती है। यही इसकी सफलता है। इस पैमाने को सभी ने माना है। पै माना वही जो सारा संसार बिना पैग पिए मानने को विवश हो जाए। बोला धनेसर
ठहाकों के साथ चौपाल चौबे जी के दिल्ली से लौटने तक स्थगित कर दिया गया .....!
रवीन्द्र प्रभात
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