गुलटेनवा हांफता हुआ आया और चौबे जी से लिपट कर लगा चिल्लाने, महाराज गजब होई गवा !
का हुआ रे काहे हांफ रहा है ?
अरे का बताएं महाराज, रामभरोसे की मेहरारू के भाई की साली गुजर गयी, इतना सुनत पूरी चौपाल ठहाकों में तब्दील हो गयी, कईसे मारी ? पान की थूक पिच से फेंकते हुए पूछा बटेसर..
नकली दबाई से, इतना सुनते ही चौबे जी से रहा नहीं गया, बोले -
देख मनमोहनी खीस मत निपोरो तुम लोग, चिरई के जान जाए लड़िका के खिलौना...तुम दब मरोगे एक दिन, कोई नहीं बचेगा !
तभी बोला असेसर, कि चौबे बाबा ! वैसे जब काफी संख्या में लोग मरेंगे , तो नरक हाउस फूल होना लाजमी है , ऐसे में यमराज की ये मजबूरी होगी कि सभी के लिए नरक में जगह की व्यवस्था होने तक स्वर्ग में ही रखा जाये । तो चलिए स्वर्ग में चलने की तैयारी करते हैं ।
संभव है आप सभी हमारी मूर्खता पर हँसेंगे , मुस्कुरायेंगे , ठहाका लगायेंगे और हम बिना यमराज की प्रतीक्षा किये खुद अपनी मृत्यु का टिकट कराएँगे ।
जी हाँ , हमने मरने की पूरी तैयारी कर ली है गुरुदेव , शायद आप भी कर रहे होंगे , आपके रिश्तेदार भी ? यानी कि पूरा समाज ? अन्य किसी मुद्दे पर हम एक हों या ना हों मगर वसुधैव कुटुम्बकम की बात पर एक हो सकते हैं , मध्यम होगा न चाहते हुये भी मरने के लिए एक साथ तैयार होना ।
तो तैयार हो जाएँ मरने के लिए , मगर एक बार में नहीं , किश्तों में । आप तैयार हैं तो ठीक , नहीं तैयार हैं तो ठीक , मरना तो है हीं , क्योंकि पक्ष- प्रतिपक्ष तो अमूर्त है , वह आपको क्या मारेगी , आपको मारने की व्यवस्था में आपके अपने हीं जुटे हुये हैं।
यह मौत दीर्घकालिक है , अल्पकालिक नहीं । चावल में कंकर की मिलावट , लाल मिर्च में ईंट - गारे का चूरन, दूध में यूरिया , खोया में सिंथेटिक सामग्रियाँ , सब्जियों में विषैले रसायन की मिलावट और तो और देशी घी में चर्वी, मानव खोपडी, हड्डियों की मिलावट क्या आपकी किश्तों में खुदकुशी के लिए काफी नहीं ?भाई साहब, क्या मुल्ला क्या पंडित इस मिलावट ने सबको मांसाहारी बना दिया , अब अपने देश में कोई शाकाहारी नहीं , यानी कि मिलावट खोरो ने समाजवाद ला दिया हमारे देश में , जो काम सरकार साठ वर्षों में नहीं कर पाई वह व्यापारियों ने चुटकी बजाकर कर दिया , जय बोलो बईमान की ।
चौबे जी ने चुप्पी तोड़ी और कहा, सही कह रहे हो असेसर, अगर तुम जीवट वाले निकले और मिलावट ने तुम्हारा कुछ भी नही बिगारा तो नकली दवाएं तुमको मार डालेगी बचवा । यानी कि मरना है , मगर तय तुमको करना है कि तुम कैसे मरना चाहते हो एकवार में या किश्तों में? भूखो मरना चाहते हो या या फिर विषाक्त और मिलावटी खाद्य खाकर? बीमारी से मरना चाहते हो या नकली दवाओं से ? आतंकवादियों के हाथों मरना चाहते हो या अपनी हीं देशभक्त जनसेवक पुलिस कि लाठियों , गोलियों से ?
इस मुगालते में मत रहना बचवा कि पुलिस तुम्हारी दोस्त है। नकली इनकाउंटर कर दिए जाओगे , टी आर पी बढाने के लिए मीडियाकर्मी कुछ ऐसे शव्द जाल बुनेंगे कि मरने के बाद भी तुम्हारी आत्मा को शांति न मिले ।
मगर नेताओं का क्या होगा महाराज ? बोला बटेसर
होगा क्या नेता और आदमी में अंतर है बचवा , तुम ही बताओ कि एक नेता ने रबड़ी में चारा मिलाया, खाया कुछ हुआ, नही ना ? एक नेताईन ने साडी में बांधकर ईलेक्त्रोनिक सामानों को गले के नीचे उतारा , कुछ हुआ नही ना ? एक ने पूरे प्रदेश की राशन को डकार गया कुछ हुआ नही ना ? एक ने कई लाख वर्ग किलो मीटर धरती मईया को चट कर गया कुछ हुआ नही ना ? और तो और अलकतरा यानी तारकोल पीने वाले एक नेता जीं आज भी वैसे ही मुस्करा रहे हैं जैसे सुहागरात में मुस्कुराये थे ।
तभी बीच में टोकते हुए बोला गुलातें वा, कि -भैया जब उन्हें कुछ नही हुआ तो छोटे - मोटे गोरखधंधे से हमारा क्या होगा? कुछ नही होगा टेंसन - वेंसन नही लेने का । चलने दो जैसे चल रही है दुनिया ।
इसपर नहीं रहा गया बटेसर को, बोला ,भाई कैसे चलने दें , अब तो यह भी नही कह सकते के अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता । क्योंकि मिलावट खोरो ने कुछ भी ऐसा संकेत नही छोड़ रखा है जिससे पहचान की जा सके की कौन असली है और कौन नकली ?
जिन लोगों से ये आशा की जाती थी की वे अच्छे होंगे , उनके भी कारनामे आजकल कभी ऑपरेशन तहलका में, ऑपरेशन दुर्योधन में, ऑपरेशन चक्रव्यूह में , आदि- आदि में उजागर होते रहते हैं । अब तो देशभक्त और गद्दार में कोई अंतर ही नही रहा। हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम - गुलिश्ता क्या होगा ?
यह सब सुनकर मायूस हो गए चौबे जी और अगली तिथि तक के लिए चौपाल को स्थगित कर दिया !
() रवीन्द्र प्रभात