आज चौबे जी कुछ शायराना मूड में हैं। उत्तरप्रदेश के मौजूदा हालात पर अपनी चुटीली टिप्पणी से गुदगुदाते हुए कह रहे है कि "अपने अखिलेश भईया की दूकान चटकी हुई है रामभरोसे,घोषणा हो चुकी है कि यू.पी. मा अब चौबीस घंटा बिजुरी जराबे वालन के घंटा दिखा दिहल जाई और किसानन के मुक्ति दे दिहल जाई ढिबरी जराबे से। ना चली अब शहरी बाबू के दिल्लगी, काहे के जहां लायिनिये ना रही ओईजा उनके दांत निपोरल के देखी। का मिर्ज़ा, का बड़कऊ,का मंगरुआ.....मनरेगा मा जे जे हचक के खईले बाड़े सब के सर्च होई बटुआ। गरम है ससुरी अनुमान की आंच, देखे के खुबई मिलिहें सी.बी.आई. की थाप पर जमपुरिया के नाच। बजे लागल सगरो भगेलू के ढोल, खुलिहें जरूर भ्रष्टाचार की पोल। केहू खिसिया के खंभा नोचिहें, त केहू जी भरि के गरिईहें। हमनी के काल्हो तमाशबीन रहली, आजो तमाशबीन हईं और काल्हो रहब स।"
"बाह-बाह चौबे जी महाराज,एकदम्म सटीक सुनाये हैं आप यू.पी. के राजनितिक मौसम कs आँखों देखा हाल। मगर नक़ल की खुली छूट से स्वच्छ परीक्षा के दावा ध्वस्त होई गए हैं महाराज ।" बोला रामभरोसे ।
तभी चहकते हुए गुलटेनवा ने कहा कि "ए भाई जी,जब हमरी सरकार के बाबूजी मुलायम बाड़ें, तs गुरु जी लोग काहे कठोर बनिहें? दावा भले ध्वस्त बा,मगर लईका मस्त बाड़ें। मौक़ा के फ़ायदा उठाके सरकार के भी ऐलान कर देवे के चाहीं कि जे सेंट-परसेंट रिजल्ट लावेगा टेबलेट या लेपटोप ले जावेगा। का गलत कहत हईं ?"
"चुप कर हरजाई,तोहके नाही मालूम उत्तर प्रदेश की जमीनी सच्चाई।" बोला रामभरोसे।
इतना सुन के रमजानी मियाँ ने अपनी लंबी दाढ़ी धीरे-धीरे सहलाई और पान की गुलगुली गाल में दबाते हए कत्थई दांत निपोरकर फरमाया,कि "बरखुरदार लकीर मत पीट, मनरेगा मा जो घट गया सो घट गया। वो घोटाला कहाँ रहा जो आपस में बँट गया ? ज़रा सोची मियाँ, योजनाबद्ध तरीकों से सरकारी सौदों की दलाली से पैसा बनाना कोई आसान काम थोड़े न है ? सोनिया जी भी अच्छी थी, मनमोहन जी भी अच्छे हैं कहते हैं विकास का मतलब हर तरफ विकास दिखाई दे, न कि केवल बायपास दिखाई दे । विकास हर मरद में,हर लुगाई में होना चाहिए । विकास भ्रष्टाचार में,मंहगाई में होना चाहिए। राजनीति को राजनेताओं के सदाचार से छुटकारा दिलाना है। तभी सरकार के मंत्री और अफसर समाज के लोगो को गोलमाल करके नही बहलाएँगे, वल्कि सीधे-सीधे कहेंगे इतना दो और इतना ले लो । सब्जियों की तरह हमारी गृहणियां घूस में भी तोलमोल कर सकेंगी। सबका भला होगा,सबका विकास होगा। फिर न आंकड़े उदास रहेंगे और न भ्रष्टाचार की करतूतें बायपास रहेंगी। चुनाव के समय नेताओं को यह हिसाब देना होगा कि कवन पार्टी भ्रष्टाचार और सदाचार में संतुलन बनाने में सफल रही है, उसी को वोट दिया जाए।"
एक शॉर्ट ब्रेक के बाद रामजनी मियाँ ने फिर फरमाया कि " अमा यार, अपने बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि भ्रष्टाचार से नफ़रत करो भ्रष्टाचारियों से नही । इसीलिए हमारे मजबूर प्रधान मंत्री जी कोर्ट की लक्षमण रेखा को नही मानते और कहते हैं कि अदालत का तो काम ही है बिना वजह ऊंगली करना । ज़रा सोचिये कि जब हम लक्ष्मण रेखा पर निगाह रखेंगे तो विकास कैसे करेंगे ? इसपर एक शेर फेंक रहा हूँ लपक सकते हो तो लपक लो मियाँ, अर्ज़ किया है - रहनुमाओं की अदाओं पर फ़िदा है दुनिया, इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारों ।"
"बाह-बाह-बाह, शुभानाल्लाह मियाँ क्या शेर फेंका है ? हमरे देश की ई सबसे बड़ी बिडंबना है कि सबसे कम योग्यता पर आप विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का चुनाव लड़ सकते हैं । विधायक बनने की परीक्षा में बैठ सकते हैं ।जनता की कोर्ट में जा सकते हैं । हमरे देश की जनता वेचारी इतनी सीधी है कि वह प्रत्याशी की कोई योग्यता नही देखती । वह प्रत्याशी का कोई ऐब नही देखती । वह कभी भी अपने निवर्तमान विधायक से यह नही पूछती कि उसने पांच साल में क्या-क्या कारनामे किये ? कौन-कौन से गुल खिलाये ? पांच साल में करोड़ों रुपये कहाँ-कहाँ, कैसे-कैसे ठिकाने लगाए ? वह पूछती नही और वे बताते नही । सबसे अहम् मुद्दा सबसे गौण हो जाता है । " भारी मन से बोला गजोधर ।
इतना सुन के तिरजुगिया के माई से नहीं रहा गया, बोली कि "जे नेता न काम के थे न काज के, दुश्मन अनाज के थे ...अईसन नेता के बाहर का रास्ता दिखाए कि नहीं हमलोग। अगिला चुनाव आवे द लोगन, ना रही भ्रष्टाचारी बांस, ना बाजी ससुरी फटही बांसुरी ।"
इतना सुनके अछैबर सेंटीमेंटल होई गए और कहने लगे कि " बहुत हुआ लटपट-सटपट, भ्रष्टाचार की दुदुंभी बजती रही झटपट-झटपट। कभी हाई कोर्ट तो कभी सुप्रीम कोर्ट मा रीट, खुलती रही परत-दर-परत हिस्ट्रीशीट। फिर भी होते रहे जनसेवक मालामाल और जनता को मिलता रहा ठन-ठन ग़ोपाल। चलो हम सब मिलकर एक ऐसी नियमावली बनाएं जिससे जनसेवा करने वाले असली चहरे हीं आगे आयें। आपका का ख्याल है चौबे जी ?"
"एकदम्म सही अछैबर भाई,पर सवाल यह उठता है कि जब अपने साथ रहने वाले सभी बदमाश शरीफ नज़र आते हों तो ऐसे में पहल करेगा कौन?" इतना कहकर चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया।
रवींद्र प्रभात