आज चौबे की चौपाल लगी है बरहम बाबा के चबूतरा पर । दीपावली के बाद कुछ सूना-सूना सा है चौपाल । खुसुर-फुसुर के बीच चौबे जी ने कहा कि "आजकल अपने देश मा भ्रष्टाचार के गरमागरम मुद्दे के साथ ससुरा चुनाव सुधारों का मुद्दा भी गरमाने लगा है राम भरोसे । कभी राइट टू रीकाल और कभी राइट टू रिजेक्ट की बात होने लगी है। अपने खुरपेंचिया जी कह रहे थे कि काहे का रिकॉल आऊर काहे का रिजेक्ट, जब ८० प्रतिशत जनता के पास नाही है कवनो पावर.......अऊर २० प्रतिशत हम नेताओं के पास है सुपर पावर । तS अईसे में ई सौभाग्य हम सस्ते में कईसे गँवा सकत हईं ? हम्म तो यही कहेंगे कि अईसन-वैसन बात करेवाला मेंटली डिफेकटेड लोगों को पागलखाने भेज दिया जाए ।दिल खोलकर चांदी के जूते खाया जाए और चोर-चोर मौसेरे भाई एक बनके रहा जाए, अगर अन्ना-वन्ना टाईप के समाजसेवियों के चेला-चपाटी आँख तरेरे के हिमाकत करे तो उसके ऊपर भी चप्पल-जूत्ते चलवा के डराया जाए । ना डरे तो साम-दाम-दंड-भेद की नीति अपनाया जाए । गुड़ से परहेज रखा जाए और गुलगुले खूब खाया जाए । यानी कि तुम्हारी भी जय-जय,हमारी भी जय-जय । कभी तुम हार जाओ कभी हम्म जीत जाएँ,जईसे भी हो दिवाला हमारा नही,जनता का निकले और हम जनसेवकगण हचक के दिवाली मनाए।"
"सही कहत हौ चौबे जी। आज से 44 साल पहिले फिल्म दीवाना के ई गीत जब मुकेश गईले रहलें तब उनके स्वप्न में भी ई उम्मीद ना रहल होई कि भविष्य मा भारत जईसन लोकतांत्रिक देश खातिर ई केतना मौजू होई । बात-बात मा देश मा राजनितिक दखलंदाजी कवनो अच्छी बात नाही।आंधी कS आम जईसन बार-बार टपक जात हैं अन्ना नेताओं की राह में । अन्ना बुढऊ को देर-सवेर तो यह स्वीकार कर ही लेना चाहिए कि राजनीति मा भ्रष्टाचार के कई रास्ते हैं। जबतक बकरी दूध देत हैं तबतक राजनीति मा बकरी क दूध से ही काम चल जात हैं और जब बकरिया दूध देना बंद कर देत हैं तS नालियों में और गंदगी के ढेरों पर मटरगश्ती करत सूआरियां काम आई जात हैं। हमको तो लगता है कि हमरे नेताओं की बढ़ती हुई तंदरुस्ती से वे जलने लगे हैं इसीलिए उनका अगेंस्ट करने लगे हैं। का गलत कहत हईं गजोधर भैया ?" बोला राम भरोसे ।
"एकदम्म सही राम भरोसे विल्कुल सोलह आने सच। अब देखो नs पप्पू ने एक सत्ताधारी दल के विरोध मा एगो उपचुनाव में प्रचार कईलें और ऊ पार्टी जे कवहूँ उहाँ से नाही जीती थी इसबार भी हार गई। अब ऊ मुगालते में हैं कि पांच राज्यों में होने वाले अगले विधान सभा चुनाव में हम्म व्यवस्था बदल देंगे। अरे व्यवस्था कवनो तबायफ का गज़रा है का, जे रात में पहनेंगे और सुबह में बदल देंगे। उनके इतना भी नाही मालूम का कि पहिले जनसेवा से नेता बनत रहे अब धन सेवा से बनत हैं। पर बनत हैं जनता के कोर्ट से ही । ऊ कोर्ट जे कवनो ऐब नाही देखत-ऊ कोर्ट जे अच्छे-बुरे में फर्क नाही करत। नतीजा सबके सामने है। जनता उनपर मेहरवान। टिकट बांटे वाला आपन चमचा पर मेहरवान । चमचा पर लक्ष्मी मेहरवान। अभी टिकट पर कुश्ती लड़त हैं-कल जनता के अखाड़े मा लडिहें। हराम की कमाई पानी की तरह बहईहें। हलाल की कमाई गाँठ मा दबाये रहिहें। विरोधियों के सफ़ेद पानी पी-पी के कोसिहें आ इलेक्सन के बाद उहे ढ़ाक के तीन पात यानी चोर-चोर मौसेरे भाई ।" बोला गजोधर ।
यह सब सुनकर रमजानी मियाँ की दाढ़ी में खुजली होने लगी।पान की पिक पिच्च से फेंक के अपनी लंबी दाढ़ी सहलाते हुए फरमाया कि "बरखुरदार,क्या पते की बात कही है हैरत तो इस बात की है गजोधर कि हम्म ऐसे नेताओं पर भरोसा करते हैं जो किसी पर भरोसा नही करते। हर पल झूठ बोलना जिनकी फितरत मा शामिल है । हर पल धोखा देना जिसकी आदत है । उनपर हमारी मेहरवानी क्यों ? क्यों ऐसे नेताओं को हम आगे बढ़ा रहे हैं ? क्यों उनका महिमा मंडन कर रहे हैं ? क्यों हम सुधर नही रहे हैं ? हम्म तो बस दुष्यंत साहब के तेवर में यही कहेंगे कि - आप बचकर चल सकें,ऐसी कोई सूरत नही। रहगुजर घेरे हुए,मुर्दे खड़ें हैं बेशुमार।।"
"बाह-बाह क्या शेर पटका है मियाँ, इस शेर पर एक सबाशेर मेरी ओर से भी, अर्ज़ किया है कि- आज मेरा साथ दो,वैसे मुझे मालूम है।पत्थरों में चीख हरगिज कारगर होती नही।" गुलटेन कहलें।
इतना सुन के तिरजुगिया की माई चिल्लाई कि "चौबे जी ई अन्ना और केजरीवाल लाख चिल्लाए, हमको नही लगता कि वास्तव में बदलेंगे सारे सपने ?"
सही कहत हौ। हम्म तोहरी बात कs समर्थन करत हईं,लेकिन जेके दर्द होत है,उहे रोवत हैं तिरजुगिया की माई। इतना कहके चौबे जी ने चौपाल अगले शनिवार तक के लिए स्थगित कर दिया।
रवीन्द्र प्रभात
0 comments:
Post a Comment